________________
॥ शासनपति श्री वर्धमान स्वामिने नमः।। श्री आत्मवल्लभ ललित पूर्णानंद प्रकाशचन्द्र सद्गुरुभ्यो नमः
. श्रीमद् उपाध्याय श्री विनय विजय प्रणीत
लाका प्रकाश
प्रथम द्रव्य लोक प्रकाश
सर्ग प्रथम
मंगलाचरण ॐ नमः परमानन्द निधानाय महस्विने । शंखेश्वर पुरोत्तं स पार्श्वनाथाय ता यिने ॥१॥
अर्थात् - शंखेश्वर नगर (वर्तमान काल में जो शंखेश्वर नामक तीर्थ है) के आभूषण रूप, परम (उत्कृष्ठ) आनंद के निधान स्वरूप, रक्षा करने वाले और कान्तिमान श्री पार्श्वनाथ भगवान् को मेरा नमस्कार हो। (१)
पिपर्ति सर्वदा सर्व कामितानि स्मृतोऽपि यः ।
संकल्पद्रुमजित्पार्धा भूयात्प्राणि प्रियंकरः ॥२॥ - जिसके नाम स्मरण मात्र से सर्व मंन कामना परिपूर्ण होती हैं तथा कल्पवृक्ष से भी अधिक श्रेष्ठतर श्री पार्श्वनाथ भगवान् सर्वदा सर्व प्राणियों का कल्याण करने वाले हों । (२).
पार्श्वक्रम नरवाः पान्तु दीप्रदीपांकुर श्रियः ।। प्लुष्ट, प्रत्यूह शलभाः सर्व भावाव भासिनः ॥३॥
तेजस्वी दीपक शिखा के सदृश जगमगाते, (चमकती) वस्तु मात्र के स्वरूप को व्यक्त-स्पष्ट रूप में करने वाले तथा विघ्न का विनाश करने वाले श्री पार्श्वनाथ परमात्मा के चरण कमल के नाखून सब का रक्षण करे । (३)
जयन्ति व्यञ्जिता शेष वस्तवोन्तस्तमो द्रुहः । गिरः सुधाकिरस्तीर्थ कृतामद्भुत दीपिकाः ॥४॥
अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके सर्व पदार्थों को प्रगट करने में अद्भुतअनोखे दीपक के समान जिनेश्वर भगवन्त की अमृत झरती वाणी सर्वत्र विजय प्राप्त करती है। (४)