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जैनकुमारसम्भव : जयशेखरसूरि
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में केवल एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में सुमंगला के चौदह स्वप्नों तथा उनके फलकथन का क्रमशः एक-एक पद्य में सूक्ष्म संकेत है । जयशेखर ने इस प्रसंग का निरूपण लगभग दो सर्गों में किया है । जैनकुमारसम्भव के कथानक में, जिसका फलागम कुमार जन्म है, यह सम्भवतः अनिवार्य था । किंतु जयशेखर को इसकी प्रेरणा हेमचन्द्र द्वारा वर्णित मरुदेवी के स्वप्नों तथा फलकथन से मिली थी, इसमें सन्देह नहीं ।
जयशेखर को प्राप्त कालिदास का दाय
जयशेखर का आधारस्रोत कुछ भी रहा हो, कालिदास के महाकाव्यों तथा जैनकुमारसम्भव के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि कथानक की परिकल्पना तथा विनियोग, घटनाओं के संयोजन तथा काव्यरूढियों के पालन में जयशेखर कालिदासकृत कुमारसम्भव का अत्यधिक ऋणी है । यह बात भिन्न है कि महाकवि के प्रबल आकर्षण के आवेग में वह अपनी कथावस्तु को नहीं सम्भाल सका है ।
कुमारसम्भव के हृदयग्राही हिमालय-वर्णन के आधार पर जयशेखर ने अपने काव्य का आरम्भ अयोध्या के रोचक चित्रण से किया है" । कालिदास के बिम्ब-वैविध्य, यथार्थता तथा सरस शैली का अभाव होते हुए भी, अयोध्या - वर्णन कवि की असंदिग्ध कवित्वशक्ति का द्योतक है । महाकवि के काव्य तथा जैनकुमार सम्भव के प्रथम सर्ग में ही क्रमशः पार्वती तथा ऋषम के जन्म से यौवन तक, जीवन के पूर्वार्द्ध का निरूपण है" । पार्वती के सौन्दर्य का यह वर्णन सहजता तथा मधुरता के कारण संस्कृत काव्य के उत्तमोत्तम अंशों में प्रतिष्ठित है । ऋषभदेव के यौवन का चित्रण यद्यपि उस कोटि का नहीं है, किन्तु वह रोचकता से शून्य नहीं है । कुमारसम्भव के द्वितीय सर्ग में तारक के आतंक से पीड़ित देवताओं का एक प्रतिनिधिमण्डल ब्रह्मा की सेवा में जाकर उनसे संकट निवारण की प्रार्थना करता है । जयशेखर के काव्य में इन्द्र स्वयं ऋषभदेव को विवाहार्थं प्रेरित करने के लिये अयोध्या में अवतरित होता है । कालिदास के अनुकरण पर जैनकुमारसम्भव के इसी सर्ग में एक स्तोत्र का समावेश किया गया है" । ब्रह्मा के स्तोत्र में निहित दर्शन की अन्तर्धारा, उसके कवित्व को आहत किये बिना, उसे दर्शन के उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित करती है । जैनकुमारसम्भव की यह प्रशस्ति ऋषभदेव के पूर्व भवों तथा सुकृत्यों का संकलन मात्र है । फलतः कालिदास के स्तोत्र की तुलना में जयशेखर का
२०. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित, १.२.८८६-८८७, जैन कुमारसम्भव, ७, ६.
२१. कुमारसम्भव, १.१-१६; जैनकुमारसम्भव, १.१-१६
२२. कुमारसम्भव, १.२० - ४६; जैनकुमारसम्भव, १.१७ -६०
२३. कुमारसम्भव, २.३-१५; जैनकुमारसम्भव २.४६-७३