Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
'
मानक:-पहास
विषय
या
गाथा सं.
पृष्ठ सं.
४३७-४४०
४४४
| ४२५ | दस करणों के नाम व लक्षण ४३२-४३५ | कर्मप्रकृति व गुणस्थानोंमें दसकरणोंका कश्चन ४३३ | बंधके समय ही उत्कर्षण व संक्रमण होता है
| उपशामनाकरण, निधत्तिकरण, निकाचितकरण ये तीनों अनिवृत्तिकरण-पुष्पस्थानके प्रथमसम्यमें व्युछिन्न हो जाते हैं
॥ इति दसकरणचूलिका ॥ ७५. स्थानसमुत्कीर्तनाधिकार
| मंगलाचरणपूर्वक प्रकृतियोंके बन्ध-उदय-सत्त्वस्थानोंको कहनेकी प्रतिज्ञा . ४३६ गुणस्थानों में मूलप्रकृतिबन्धस्थान तथा उपशांतमोह आदि तीन गुणस्थानों में
सातावेदनीयका बन्ध
| मूलप्रकृतियोंमें भुजकार, अल्पतर, अवस्थित, अवक्तव्यबन्ध |४३८-४३९ | मूलप्रकृतियोंके उदय व उदीरणास्थान
| मूलप्रकृतियोंके सत्त्वाधान ४३९ ज्ञानावरणादिमें प्रत्येककर्मबन्धस्थानोंका कथन
४५३
४५४-४५६
४५९-४६०
४४०
दशनावरणक बन्धस्थान भुजकार, अल्पतर, अवस्थित व अवक्तव्य बन्ध
४६२
४४१
४६३-४६५
४६६-६७
४६८
दर्शनावरणके उदयस्थान
दर्शनावरणक सत्वस्थान ४४१-४४२ | मोहनीयक के ५० बन्धस्थानोंका गुणस्थानमें कधन, उनमें भुवांधीप्रकृति
| माहनोयकर्मक बन्धस्थानोंमें भंगोंका कथन ४४५ | साहनीयकर्मके बन्धस्थानोंमें भुजकार, अल्पतर त्र अवस्थित बंधोंकी संख्या
| भुजकार, अल्पतर, अवस्थित व अवक्तव्यबन्धोंका लक्षण और उनकी संख्याओं का
विवरण । | मोहनीय कनके भुजकारबन्धोंके भंगोंका कथन
माहनीयक के अल्पतरबन्धोंके भङ्ग मोहनीयक के अवक्तव्य व अवस्थितनयोंके भड़
४६९-४८०
४७१-४७२
४५०
४५२