Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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(३४)
गाथा सं.
पृष्ठ सं.
विषय
३१४
३९६-३९७
३९४
| सत्त्वस्थानोंको पढ़ने-सुनने अधवा भावना करनेका फल निर्वाणसुख श्री कनकनन्दी आचार्यद्वारा सत्वस्थानोंका कंथन किया गया व सिद्धान्त-चक्रवर्तीका लक्षण
॥ इति सत्त्वाधिकार ॥
४. त्रिचूलिकाधिकार ३९८
| मंगलाचरण, नवप्रश्नचूलिका, मंत्रभाषाहारचूलिका. दशकरणचूलिका ३९९-४०७ | ३९६-४०० | नवप्रश्नों के नाम, तत्सम्बन्धी प्रकृतियोंके सान्तर व निरन्तरका लक्षण, न्युच्छित्तिका
लक्षण ४००-४०१ | बन्धत्युच्छिति व उदयव्युच्छिति इन दोनोंका पूत्रभिर व युगपत् विचार ४०२-४०३ |३९८ | स्त्रोदय व सरोदय तथा स्वोदयारोदयबन्ध ४०४-४०७ |३९१-४०० | सान्तर व निरन्तर तधा सान्दरनिरन्तरबन्ध
।। इति नवप्रश्नलिका।
|३९७
४०८
४०९-४१०
४१५-४१३ ४१५-४२८
पंचभागहारचूलिका मंगलाचरण |४०५-४६ | पंचभागहारों के नाम -लक्षण व कार्य, बन्ध होनेपर संक्रमण होता है
४०५-४७८ किन प्रकृतियाका कहाँर कौनता संक्रमण होता है और कोनसा समज नहीं होना । |४०८-८५७ ४०८ | तिर्वच एकादश-कृतियों के नाम
| स्थिति व अनुभागबंध सूक्ष्मसापरायणस्थानपर्यंत है. वहींतक संक्रमण है। ४२३ | पंचभागहार व कर्पण-अपहारसम्बन्धी अल्पबहत्त्व
॥ इति पंचभागहारचूलिका॥ अथ दसकरणचूलिका
४२९
४३०-४३५
मंगलाचरण