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३६ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
आगम निष्ठ मनीषी • डॉ० श्रेयांसकुमार जैन, बड़ौत
विद्वत शिरोमणि श्री पं० फुलचन्द्र जैन सिद्धान्ताचार्य वर्तमान विद्वत परम्पराके देदीप्यमान रत्न है। इन्होंने धवल, जयधवल के अनुवाद और सम्पादनमे जो कार्य किया है, वह सहयोगात्मक कार्य स्तुत्य है । द्रव्यानुयोग और करणानुयोगके अनेक ग्रन्थोंकी टीकाएँ आपने शास्त्रीय शैलीमें की है, जिनसे विद्वत परम्परा और समस्त समाज अत्यन्त उपकृत है।
जीवनका ध्येय ही चिन्तन मनन और लेखन है, ऐसे आगमनिष्ठ मनीषीके अभिनन्दनसे आनन्दित हूँ। अभिनन्दन करते हुए मेरी कामना है कि शत शरद् ऋतुओं की सुरभिसे सुरभित होकर आगमकार्यमें व्याप्त रहें। सादगी एवं सच्चरित्रताको साक्षात मूर्ति • सुरेन्द्रकुमार जैन सौरया, बिजनौर
पूज्य पण्डितजी श्रमण धर्मके मूर्धन्य विद्वान् तथा सादगी, सच्चरित्रता, संयम तथा सहनशीलताकी साक्षात् मूर्ति हैं। उनका जीवन "सादा जीवन एवं उच्च विचार"की उक्तिको चरितार्थ करनेवाला है । जैन धर्मका कोई भी सिद्धान्त तथा कोई भी ग्रन्थ ऐसा नहीं है जिसका उन्होंने अध्ययन न किया हो । षट्खण्डागम जैसे प्राचीन जैन ग्रन्थोंका वाचन कर विषयको भली-भाँति समझाना आपकी विद्वदवर्यताका ज्वलन्त प्रमाण है । आज जबकि व्यक्ति धर्मसे विमुख तथा धार्मिक सिद्धान्तोंसे अनभिज्ञ है। एसेमें धार्मिक विद्वानोंकी महती आवश्यकता है । ऐसे समयमें सिद्धान्ताचार्यजी समय-समय पर हम जैसे व्यक्तियोंको स मार्ग पर अग्रसित करते रहें। इसी आशाके साथ मैं जैनधर्म के सुप्रसिद्ध विद्वान् पंडितजीको श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। सादा जीवन उच्च विचारके धनी .श्री शशिप्रभा जैन शशाङ्क, आरा
आदरणीय पण्डितजी यथानाम तथा गणवाले व्यक्तित्वसे विभूषित हैं। मुझे उनके कई बार प्रवचन सुननेका सौभाग्य मिला। वाणीकी तेजस्विताके धारक पण्डितजीमें श्रोताओंके अन्तःकरणको स्पर्श करनेकी अपूर्व क्षमता है। माँ श्री पूज्या चन्दाबाईजी सादा जीवन उच्चविचारके धनी शास्त्रीजीके गुणोंकी प्रशंसिका थीं । उनके इस अभिनन्दनके शुभावसर पर मेरी विनयाञ्जलि अर्पित है। मेरे पितृतुल्य गुरुजी .श्रीमती मुन्नी जैन, वाराणसी
मुझे यह जानकर बहत प्रसन्नता हो रही है कि सुप्रसिद्ध मनीषी पण्डितजीका अभिनन्दन हो रहा है। सन् १९७४ में जब पहली बार बनारस आई तबसे निरन्तर मुझे पूज्य पण्डितजी एवं पूज्यनीया अम्माजीका अपार स्नेह प्राप्त रहा है । लाडनूं से पुनः बनारस आनेके बादसे तो आ० पण्डितजीके पास ही मेरा आवास होनेसे दोनोंका बराबर सहयोग और मार्गदर्शन मिला । स्वाध्याय परायण स्नेहशीला अम्माजीकी सरलता और वात्सल्यभावकी कृतज्ञताके प्रति जो कुछ भी लिखू कम होगा और पूज्य पण्डितजीकी विद्वत्ताका वर्णन करना सूर्यको दीपक दिखाना है। मुझे पण्डितजीने प्राकृताचार्य कर लेनेको प्रेरित ही नहीं किया अपितु षट्खण्डागम और कषायपाहड, प्राकृत-प्रकाश आदि ग्रन्थोंके पाठ्यक्रममें निर्धारित अंशोंको मुझे पढ़ाया भी। यह मेरा गौरव और सौभाग्य है कि इतने उच्चकोटिके विद्वानसे मुझ जैसोंको पढ़नेका सुअवसर और स्नेह प्राप्त हुआ। मेरी हार्दिक भावनायें हैं कि पूज्य पण्डितजी पूर्ण स्वस्थ रहकर दीर्घायुष्य प्राप्त करें।
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