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प्रथम खण्ड : ३५
अभिनंदनीयका अभिनंदन-बनाम जैनसिद्धान्तका अभिनंदन •श्री कमलकुमार जैन, छतरपुर
जैन सिद्धान्तके मनीषी, विशेष रूपसे कर्म सिद्धान्तके अद्वितीय अध्येता माननीय पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री वाराणसीको ऐसा विरला ही व्यक्ति होगा जो न जानता हो । यह तो सम्भव हो सकता है कि बहुतोंने प्रत्यक्ष न देखा हो परन्तु जिसने जैन होनेके नाते णमोकार मंत्रका भी ज्ञान किया है वह पूज्यपंडित जी को अवश्य ही जानता होगा।
पंडितजीको हमलोग चलता फिरता जैनागम भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । निश्चित रूपसे पंडितजीका पर्यायवाची नाम यदि ढूँढ़ना पड़े तो वह जैनागम ही होगा।
१९५५ में श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरिमें बुन्देलखंडकी बहुप्रचलित परन्तु बहुत वर्षोंसे बन्द गजरथ परम्पराका और प्रथम बार चन्देके माध्यमसे प्रारम्भ होनेवाले गजरथका उद्घाटन हुआ। उस समय अखिल भारतीय स्तरकी संस्थाओंके अधिवेशन हुये । विदेशी विद्वानोंका भी आगमन हुआ। इस अवसर पर अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद का अधिवेशन था और विशेषता यह थी कि इस अधिवेशनकी अध्यक्षता भी माननीय पंडितजी ने की । पंडितजीका जो सारगर्भित अध्यक्षीय भाषण जो इस अवसरपर हुआ वह महत्त्वपूर्ण था। पंडितजी पूर्व में गजरथोंमें विपुल धनका अपव्यय देखकर उस धनका सदुपयोग जिनवाणीके प्रचार प्रसार अध्ययन मननकी ओर करनेकी भावनासे विरोधी थे । उन्होंने बड़ी दृढ़ताकै साथ अनेक गजरथोंका सशक्त विरोध भी किया। १९५५ में सम्पन्न इस गजरथ महोत्सवमें जो कि चन्देसे प्रारम्भ था अतः एक तो इसमें किसीको पदवी न देनेका प्रस्ताव किया क्योंकि इसके पूर्व गजरथ कारकोंको सिंघई, सवाई सिंघई, सेठ, श्रीमन्त आदि पदवियोंसे अलंकृत करनेकी परम्परा रही है। दूसरी बात यह कही गई कि इस आयोजनसे द्रव्य बचे उसका उपयोग सार्वजनिक हितमें, जिनवाणीके प्रचार प्रसारमें होना चाहिये । पंडितजीके दोनों प्रस्ताव इस गजरथ महोत्सवमें स्वीकृत किये गये और क्रियान्वयन भी यहीसे हुआ । प्रथम तो यह हुआ कि गजरथ कारकोंको कोई भी पदवी प्रदान नहीं की गई। दूसरा कार्य सार्वजनिक हितमें यह हुआ कि पूज्य वर्णीजीके आदेशानुसार बड़ा मलहरामें एक हायर सेकेण्डरी स्कूल प्रारम्भ कर दिया गया ।
जैन सिद्धान्त पर तो आपका गंभीर ज्ञान है ही जैन इतिहास और पुरातत्त्वमें भी आपकी विशेष रुचि है पंडित जी जब कभी कभी कहीं तीर्थस्थान मन्दिरोंमें दर्शनार्थ जाते हैं वहाँकी मूर्तियोंके इतिहास पर पहले दृष्टि डालते हैं, मूर्ति लेखोंके संग्रहकी प्रवृत्ति है, और उसके आधार पर इतिहासकी महत्त्वपूर्ण जानकारीके साथ ही जैन जातियोंके क्रमबद्ध इतिहासकी खोज करते हैं।
शिक्षा जगत्में तो पंडितजीका कार्य अभूतपूर्व ही है अनेक शिक्षा संस्थाओंके जनक पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णीसे आपका निकटका सम्बन्ध रहा है। सामाजिक क्षेत्रमें भी पंडितजीका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने समाजगत रूढ़ियोंका विरोध किया । बहुव्यय साध्य अनावश्यक गजरथोंका सशक्त विरोध किया और समाजको प्रगतिशील बनाने में योगदान दिया।
धर्म प्रचारके रूपमें पंडितजी एक प्रमुख आध्यात्मिक वक्ताके रूपमें प्रसिद्ध हैं। हजारोंकी विशाल जनसभामें पंडितजीका आध्यात्मिक प्रवचन श्रोताओंको मन्त्रमुग्ध करता है जहाँ आजका श्रोता कर्म सिद्धान्त जैसे क्लिष्ट विषयको गम्भीरतासे सुन पानेमें भी अपनेको अक्षम मानता है वहीं पंडितजीके प्रवचनकी यह खूबी है कि गम्भीरसे गम्भीर विषयको इतना सरल और रोचक बना देंगे कि श्रोताओंको उसमें बड़ा आनन्द आयेगा।
अभिनन्दनके इस स्वर्णिम अवसर पर जैन सिद्धान्तके मर्मज्ञ सिद्धान्ताचार्य माननीय पंडित फलचन्द्रजीचरणोंमें मैं अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए उनके स्वस्थ एवं दीर्घ जीवनकी मंगल कामना करता हूँ।
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