Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १२ : उ. ४ : सू. ९३-९७
९३. पृथ्वीकायिक के रूप में - पृच्छा । एक भी नहीं ।
भविष्य में कितने होंगे ?
भगवती सूत्र
एक भी नहीं। इसी प्रकार जहां वैक्रिय शरीर हैं, वहां एकोत्तरिक (सूत्र ९२ की भांति), जहां वैक्रिय - शरीर नहीं है वहां पृथ्वीकायिकत्व की भांति वक्तव्य है यावत् वैमानिक का वैमानिक के रूप में। तेजस - पुद्गल - परिवर्त्त और कर्म- पुद्गल - परिवर्त्त सर्वत्र (नैरयिक से वैमानिक तक) एकोत्तरिक वक्तव्य हैं । मनः पुद्गल - परिवर्त्त समस्त पंचेन्द्रियों में एकोत्तरिक- किसी के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय, असंख्येय अथवा अनंत । विकलेन्द्रियों में नहीं होंगे। इसी प्रकार वचन - पुद्गल परिवर्त की वक्तव्यता, इतना विशेष है - एकेन्द्रियों में वक्तव्य नहीं है । आनापान - पुद्गल परिवर्त सर्वत्र (नैरियक से वैमानिक तक चौबीस दंडकों में) एकोत्तरिक यावत् वैमानिक के वैमानिक रूप में।
९४. भंते ! नैरयिकों के नैरयिक के रूप में अतीत में कितने औदारिक- पुद्गल - परिवर्त हुए हैं ? एक भी नहीं ।
भविष्य में कितने होंगे ?
एक भी नहीं । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के रूप में ।
९५. पृथ्वीकायिक के रूप में - पृच्छा ।
अनंत ।
भविष्य में कितने होंगे ?
अनंत। इसी प्रकार यावत् मनुष्यत्व में । वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक के रूप में नैरयिकत्व की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के वैमानिक के रूप में। इसी प्रकार सात पुद्गल - परिवर्त वक्तव्य हैं - जहां हैं, वहां अतीत और भविष्य में अनंत वक्तव्य हैं। जहां नहीं हैं, वहां अतीत और भविष्य दोनों में वक्तव्य नहीं हैं यावत्
९६. वैमानिकों के वैमानिक के रूप में अतीत में कितने आनापान - पुद्गल - परिवर्त हुए हैं ? अनंत ।
भविष्य में कितने होंगे ?
अनंत ।
९७. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - औदारिक- पुद्गल - परिवर्त्त औदारिक- पुद्गल - परिवर्त है ?
गौतम ! औदारिक- शरीर में वर्तन करते हुए जीव द्वारा औदारिक- शरीर के प्रायोग्य द्रव्य औदारिक- शरीर के रूप में गृहीत, बद्ध, स्पृष्ट, कृत, प्रस्थापित, निविष्ट, अभिनिविष्ट (तीव्र अनुभाव के रूप में प्रस्थापित ), अभिसमन्वागत (उदय के अभिमुख), पर्याप्त, परिणामित, निर्जीर्ण, निःसृत और निःसृष्ट होते हैं ।
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