Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १२ : उ. ४ : सू. ८१-८७
भगवती सूत्र
पुद्गल-परिवर्त्त-पद ८१. भंते ! इन परमाणु-पुद्गलों के संघात और भेद के अनुपात से अनंत-अनंत पुद्गल-परिवर्त्त सम्यक् प्रकार से अनुगमनीय होते हैं। क्या ऐसा कहा गया है? गौतम ! हां, इन परमाणु-पुद्गलों के संघात और भेद के अनुपात से अनंत-अनंत पुद्गल-परिवर्त सम्यक् प्रकार से अनुगमनीय (एक के बाद एक) होते हैं, ऐसा कहा गया है। ८२. भंते ! पुद्गल-परिवर्त कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम ! पुद्गल-परिवर्त सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त, वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त, तैजस-पुद्गल-परिवर्त, कर्म-पुद्गल-परिवर्त, मनः-पुद्गल-परिवर्त,
वचन-पुद्गल-परिवर्त और आनापान-पुद्गल-परिवर्त। ८३. भंते ! नैरयिकों के कितने प्रकार के पुद्गल-परिवर्त्त प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! नैरयिकों के सात प्रकार के पुद्गल-परिवर्त्त प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदारिक-पुद्गल-परिवर्त, वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त यावत् आनापान-पुद्गल-परिवर्त। इसी प्रकार यावत्
वैमानिक देवों के। ८४. भंते ! प्रत्येक नैरयिक के अतीत में कितने औदारिक पुद्गल-परिवर्त हुए हैं ?
अनंत। भविष्य में (पुरस्कृत) कितने होंगे? किसी के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय, असंख्येय अथवा अनंत। ८५. भंते ! प्रत्येक असुरकुमार के अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं?
अनंत। भविष्य में कितने होंगे? किसी के होंगे, किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय, असंख्येय अथवा अनंत ।
इसी प्रकार यावत् वैमानिक के। ८६. भंते ! प्रत्येक नैरयिक के अतीत में कितने वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं?
अनंत। इसी प्रकार जैसे औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त की वक्तव्यता वैसे ही वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वैमानिक के। इसी प्रकार यावत् आनापान-पुद्गल-परिवर्त की वक्तव्यता। यह परिवर्त्त चौबीस दंडकों में ही होता है। इनके प्रत्येक जीव की अपेक्षा
सात-सात दंडक होते हैं। ८७. भंते ! नैरयिकों के अतीत में कितने औदारिक-पुद्गल-परिवर्त्त हुए हैं? भविष्य में कितने होंगे?
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