Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ परिधि, उन पर्वतों पर प्रासाद और उनकी ऊंचाई, यमक नाम का कारण, यमक पर्वत की नित्यता, यमक देवों की राजधानी के स्थान प्रादि का वर्णन है। उत्तरकुरु में नीलवंत द्रह का स्थान, प्रायाम-विष्कंभ, और उद्वेध, पद्मकमल का प्रायाम, विष्कंभ, परिधि, बाहल्य, ऊंचाई और सर्वोपरिभाग, इसी तरह कणिका, भवन, द्वार, मणिपीठिका 108 कमल, कणिकाएँ, पन परिवार के पायाम-विष्कंभ और परिधि वर्णित हैं। कंचनग पर्वतों का स्थान, प्रासाद, नाम का कारण, कंचनगदेव और उसकी राजधानी, उत्तरकुरु द्रह का स्थान, चन्द्रद्रह ऐरावण द्रह, माल्यवंत द्रह, जम्बूपीठ का स्थान, मणिपीठिका, जम्बू सुदर्शन वृक्ष की ऊंचाई-पायामविष्कंभ प्रादि का वर्णन है। जम्बूसुदर्शन की शाखाएँ, उन पर भवन द्वार, उपरिभाग में सिद्धायतन के द्वारों को ऊंचाई, विष्कंभ प्रादि वर्णित हैं। पार्श्ववर्ती अन्य जम्बूसुदर्शनों की ऊंचाई, अनाहत देव और उसका परिवार, चारों ओर के वनखण्ड, प्रत्येक बनखण्ड में भवन, नन्दापुष्करिणियां, उनके मध्य प्रासाद, उनके नाम, एक महान कुट, उसकी ऊंचाई और पायाम-विष्कंभ आदि का वर्णन है। जम्बूसुदर्शन पर अष्ट मंगल, उसके 12 नाम, नाम का कारण, अनाहत देव की स्थिति, राजधानी का स्थान जम्बूद्वीप नाम की नित्यता और उसमें चन्द्र-सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और गरागण की संख्या आदि का वर्णन किया गया है। लवण समुद्र---लवण समुद्र का संस्थान, उसका चकवाल विष्कंभ, परिधि, पद्मवरवेदिका की ऊंचाई और वनखंड, लबण समुद्र के द्वारों का अन्तर, लवण समुद्र और धातकीखंड का परस्पर स्पर्श, परस्पर में जीवों की उत्पत्ति, नामकरण का कारण, लबणाधिपति सुस्थित देव की स्थिति, लवण समुद्र की नित्यता, उसमें चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारानों की संख्या, लवण समुद्र की भरती और घटती और उसमे रहे हए चार पाताल कलशों का वर्णन है। लदणाधिपति सुस्थित देव, गौतम द्वीप का स्थान, वनखंड, क्रीडास्थल, मणिपीठिका पोर नाम के कारण का उल्लेख है। जंबूद्वीप के चन्द्रद्वीप का स्थान, ऊंचाई, पायाम-विष्कंभ, क्रीडास्थल, प्रासादावतंसक, मणिपीठिका का परिमाण, नाम का हेतु आदि वर्णित हैं। इसी प्रकार जंबूद्वीप के सूर्य और उनके द्वीपों का वर्णन है। लवणसमुद्र के बाहर चन्द्र-सूर्य और उनके द्वीप, धातकीखण्ड के चन्द्र-सूर्य और उनके द्वीप, कालोदधि समुद्र के चन्द्र-सूर्य और उनके द्वीप, पुष्करवरद्वीप के चन्द्र सूर्य और उनके द्वीप, लवण समुद्र में वेलंधर मच्छ कच्छप, बाह समुद्रों में वेलंघरों का प्रभाव, लवण समुद्र के उदक का वर्णन, उसमें वर्षा आदि का सद्भाव किन्तु बाह्य समुद्रों में प्रभाव आदि का वर्णन है। धातकीखण्ड-धातकीखण्ड का संस्थान, चक्रवाल विष्कंभ, परिधि, पावरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारों का अन्तर, धातकीखंड और कालोदधि का परस्पर संस्पर्श और जीवोत्पत्ति, नाम का हेतु, धातकीखण्ड के वृक्ष और देव-देवियों की स्तुति, उसकी नित्यता तथा चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-तारागण आदि का वर्णन है। कालोद समुद्र-कालोद समुद्र का संस्थान, चक्रवाल विष्कंभ परिधि, पनवरवेदिका, वनखंड, चार द्वार, उनका अन्तर, कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीप का परस्पर स्पर्श एवं जीवोत्पत्ति, नाम का कारण, काल महाकाल देव की स्थिति, कालोद समुद्र की नित्यता और उसके चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और तारों प्रादि का वर्णन किया गया है। पुष्करवर द्वीप-पुष्करवर द्वीप का संस्थान, चक्रवाल विष्कंभ, परिधि, पनवरवेदिका, बनखंड, चार द्वार, उनका अन्तर, द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का स्पर्श और परस्पर में जीवोत्पत्ति, नाम का हेतु, पद्म और महापद्म वृक्ष, [ 32 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org