Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शक्ति-निरूपण
१७
आज के ऐतिहासिक विद्वानों का विचार है कि चरक शास्त्र या संहिता का मूल नाम 'आत्रेय-संहिता' है तथा आत्रेय पुनर्वसु उसके कर्ता हैं । आत्रेय ने अग्निवेश को आयुर्वेद का उपदेश दिया था। इस संहिता का प्रथम संस्करण चरक ने तथा दूसरा संस्करण दृढबल ने किया । आत्रेय संहिता का प्रतिसंस्करण करने वाले चरक शेष के अवतार समझे जाते थे। चरक शाखा से सम्बद्ध किसी विद्वान् ने प्रात्रेय संहिता का प्रतिसंस्कार किया, इस कारण अग्निवेश' नाम गौण पड़ गया तथा चरक के नाम से यह संहिता प्रसिद्ध हो गई। यह संभावना की जाती है कि पतञ्जलि ही वे चरक गोत्रीय विद्वान् हैं, जिन्होंने पहले आत्रेय संहिता का प्रतिसंस्करण किया और बाद में महाभाष्य की रचना की। द्र० ----पतञ्जलिकालीन भारत (पृ० ५१-५२) ।
यहाँ चरक के नाम से उद्धृत पंक्ति चरक के संस्करणों में नहीं मिल सकी, परन्तु चरक के सूत्रस्थान के तिस्रषणीय अध्याय में निम्न दो श्लोक मिलते हैं, जिनमें प्राप्त की विस्तृत परिभाषा दी गई है ----
रजस्तमोभ्यां निमुक्तास् तपोज्ञानबलेन वै । येषां त्रैकालम् अमलं ज्ञानम् अव्याहतं सदा । प्राप्ताः शिष्टा विबुद्धास् ते तेषां वाक्यम् असंशयम् । सत्यं वक्ष्यन्ति ते कस्माद् असत्यं नीरजस्तमाः ॥ (अ० ११, सू० १६)
[शाब्द-बोध में कार्य-कारण-भाव के स्वरूप का प्रदर्शन
तद्-धर्मावच्छिन्न-विषयक-शाब्द-बुद्धित्वावच्छिन्नं प्रति तद्धर्मावच्छिन्न-निरूपित-वृत्ति-विशिष्ट-ज्ञानं हेतुः । अत एव नागृहीतवृत्तिकस्य शाब्द-बोधः । अत एव च न हि 'गुड' इत्युक्ते मधुरत्वं प्रकारतया गम्यते इति "समर्थ०"सूत्र-भाष्यं संगच्छते । 'गुड' प्रादि-शब्देन 'गुडत्वजात्यवच्छिन्नो गुडपद-वाच्यः' इत्येव बोधो जातिप्रकारकः । मधुरत्वं तु 'गुडो मधुर ऐक्षवत्वात्' इत्यनुमानरूप
मानान्तरगम्यम् । उस धर्म (घटत्व आदि) से अवच्छिन्न ('घट' आदि) के द्वारा निरूपित जो वृत्ति' उससे विशिष्ट (घट शब्द का) ज्ञान उस धर्म (घटत्व आदि) से विशिष्ट वस्तु (घट आदि) के शाब्दबोध में कारण बनता है । इसीलिये जिस व्यक्ति को उस शब्द की 'वृत्ति' का ज्ञान नहीं है उसे (उस शब्द के उच्चरित होने पर भी) शाब्दबोध नहीं होता और इसी कारण “गुड:' इस शब्द के कहने पर मधुरता का ज्ञान विशेषण के रूप में नहीं होता"--यह समर्थः पद-विधिः (पा० २.१.१) सूत्र का भाष्य (भाष्य में कथित अंश) सुसंगत हो जाता है। (क्योंकि) १. तुलना करो-महा ० २.१.१, पृ० ५२, न हि गुड इत्युक्ते मधुरत्वं गम्यते ।
For Private and Personal Use Only