Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निपातार्थ-निर्णय
१६५
'च'-शब्दद्योत्य'-समुच्चयस्य असत्त्व-भूतत्वात् षष्ठ्यप्राप्तेश्च । किंच ‘घटं पटं च पश्य' इत्यादौ घट'-पदस्य घटप्रतियोगिक-समुच्चयवति अप्रसिद्धा शक्तिरेव लक्षणा । 'च'-शब्दस्तु तात्पर्यग्राहकः । अतएव उभयोः सामानाधिकरण्येन क्रियान्वयाद् द्वितीया। 'घट'-समुच्चयवन्तं पटं पश्य' इति बोधः । 'समुच्चयस्य प्रतियोग्याकाक्षायां सन्निहितत्वाद् ‘घटस्य' प्रतियोगित्वम् पटे तु समुच्चयस्य भेदेन अन्वयो न तु पटस्य समुच्चये इति क्व षष्ठ्यापादनम् । “नामार्थयोरभेदान्वय."-व्युत्पत्तिस्तु निपातातिरिक्तविषया।
वह (कौण्डभट्ट आदि का कथन) ठीक नहीं है क्योंकि शब्द की शक्ति के स्वभाव के कारण 'निपात' अपने अर्थ को अन्य शब्दों के विशेषण के रूप में ही प्रकट करते हैं। इसलिये 'च' आदि ('निपातों') का पुनः विशेषणों (शोभनः' आदि) के साथ अन्वित होने का प्रसंग ही नहीं है। और 'च' 'निपात' के द्योत्य अर्थ 'समुच्चय' के द्रव्य न होने के कारण षष्ठी (विभक्ति) की प्राप्ति भी नहीं है। तथा 'घटं पटं च पश्य' (घड़े तथा वस्त्र को देखो) इत्यादि (वाक्यों) में 'घट' इस पद की, घट के (घट-प्रतियोगिक) समुच्चय से युक्त, पट में अप्रसिद्धा शक्ति अथवा 'लक्षणा' माननी चाहिये । 'च' निपात तो ('घट' शब्द के इस विशिष्ट) तात्पर्य का द्योतक (मात्र) है। इसलिये दोनों ('घट' तथा 'पट') का सामानाधिकरण्य सम्बन्ध से क्रिया ('पश्य') के साथ अन्वय होने के कारण दोनों ('घट' तथा 'पट') शब्दों के साथ द्वितीया (विभक्ति) होती है। (इसी कारण इस वाक्य से) 'घट सहित पट को देखो' यह बोध होता है । 'समुच्चय' (सहित का भाव) के प्रतियोगी की 'याकांक्षा' होने पर, समीप में स्थित होने के कारण 'घट' को ही प्रतियोगी माना जायगा। 'पट' में तो 'समुच्चय' (सहितता) का भेद सम्बन्ध से ही अन्वय होगा, न कि 'समुच्चय' में 'पट' का। इसलिये षष्ठी विभक्ति की उपस्थिति कहाँ हो सकती है ? "दो प्रातिपदिकार्थों में अभेद-सम्बन्ध से अन्वय होता है" यह व्युत्पत्ति (नियम) तो निपातों से भिन्न विषय वाली है। १. निस० तथा काप्रशु० में—'च शब्द-द्योत्य... .. .. असत्त्वभूतत्वात्" यह अंश अनुपलब्ध है। २. निस० तथा काप्रशु० में "घटपदस्य ....."द्वितीया" यह अंश भी अनुपलब्ध हैं। इस के स्थान
पर वहां “घटम्' इत्यस्य क्रियायाम् एवान्वयः । अत: एव ततो द्वितीया" इतना ही पाठ
मिलता है। ३. निस० तथा काप्रशु०-घटं । ४. वंमि में 'स्वन्मतेऽपि' इतना अधिक है। ५. ह. में इसके बाद 'वाच्यार्थम् आदाय' इतना अधिक है ।
For Private and Personal Use Only