Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरणसिद्धान्त-परम- लघु-मंजूषा
'व्यपेक्षाभाव' (सामर्थ्यं) के प्रतिपादक नैयायिक तथा मीमांसक (विद्वान् ) जो यह कहते हैं कि समास में शक्ति नहीं है क्योंकि 'राजपुरुषः' इत्यादि (प्रयोगों) में, 'राज' पद आदि की, 'सम्बन्धी' (अर्थ) में, 'लक्षणा' - वृत्ति मानने से 'राजसम्बन्धवान् से अभिन्न पुरुष' यह ( अभीष्ट ) बोध हो जायगा । इसलिये ( ' राजन् ' शब्द का 'लक्षरणा' के ग्राधार पर 'राज-सम्बन्ध-युक्त' प्रर्थ मानने के कारण) 'राजन' शब्द के 'पदार्थ ('राज-सम्बन्ध-युक्त') का एक देश (एक भाग) होने के कारण 'राजा' अर्थ में 'ऋद्धस्य' इत्यादि विशेषरण का सम्बन्ध नहीं होता क्योंकि “पदार्थ पदार्थ से (ही) अन्वित होता 'पदार्थ' के एकदेश के साथ नहीं" यह कहा गया है । अथवा "विशेषरण सहित पदों का समास नहीं होता और समासयुक्त पद का विशेषरण के साथ सम्बन्ध नहीं होता" यह भी ( महा० २.१.१. पृ० १४ में ) कहा गया है। और न ही 'घनश्यामः (बादल के समान काला ) ''नष्कौशाम्बिः' ( कौशाम्बी से निष्क्रान्त), गोरथ:' (जिस में बैल जुते हुए हैं ऐसा रथ) इत्यादि (प्रयोगों) में 'इव' आदि ( 'क्रान्त', 'युक्त' शब्दों) के प्रयोग का दोष है । क्योंकि 'लक्षणा' वृत्ति के द्वारा ही ( उन उन प्रयोगों में उन उन प्रथ a) कथित या उक्त हो जाने के कारण " उक्तार्थानाम् ग्रप्रयोगः " ( कथित अर्थ के लिये शब्द का प्रयोग नहीं होता) इस न्याय के अनुसार इव' ग्रादि (शब्दों) का ( इन प्रयोगों में) उच्चारण नहीं होगा । और न ( ' व्यपेक्षा' पक्ष के मानने पर अष्टाध्यायी में) "विभाषा" सूत्र की ही आवश्यकता होगी। क्योंकि 'लक्षणा' वृत्ति के द्वारा 'राजसम्बन्धी अभिन्न पुरुष' का बोध कराने की इच्छा होने पर 'समास' का प्रयोग तथा 'राज-सम्बन्ध वाला ( पुरुष ) ' इस प्रकार का बोध कराने की इच्छा होने पर 'विग्रह' - वाक्य का प्रयोग होगा । इस रूप में (समास तथा विग्रह के) प्रयोग की व्यवस्था सम्भव हो जायगी ।
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“पङ्कज' शब्द के समान (समास आदि में भी समुदाय में ही ) 'शक्ति' हैं" इस (कथन) के अनुसार 'पङ्कज' शब्द का दृष्टान्त भी ( समुदाय में) 'शक्ति' का साधक नहीं है, क्योंकि उन ( पङ्कज" ग्रादि शब्दों) में अवयवों (पङक + न् + उ ग्रादि) की (वाचकता) 'शक्ति' को न जानने वालों को भी उनसे ( कमल आदि अर्थों की ) प्रतीति होती है । और अवयवों की 'शक्ति' का ज्ञान न होने पर 'लक्षणा' (वृत्ति) के द्वारा उन ( ' पङ्कज' शब्द के अवयवों) से विशिष्ट अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता ( इसलिये वहाँ तो समुदाय में 'शक्ति' मानना ग्रावश्यक है । इसी कारण (अवयवों की शक्ति का ज्ञान विशिष्ट अर्थबोध का प्रयोजक है इसीलिए ) 'राजन्' पद यादि (अवयवों) के अर्थ का ज्ञान न होने पर 'राजपुरुषः' इत्यादि (प्रयोगों) में विशिष्ट अर्थ का ज्ञान नहीं होता ।
'चित्रगुः' इत्यादि (प्रयोगों) में 'लक्षणा' के सम्भव होने पर भी षष्ठ्यर्थ से भिन्न 'बहुव्रीहि समास में ( 'लक्षणा' मानना) असम्भव है: क्योंकि ( उनमें 'लक्षणा' (मानने पर ) अनेक नियमों से विरोध उपस्थित होता है- यह भी नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि 'प्राप्तोदकः ( जल ने
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