Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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समासादि-वृत्त्यर्थ ['एकार्थीभाव'-सामर्थ्य पर किये जाने वाले कुछ अन्य प्राक्षेपों का समाधान]
ननु 'रथन्तर' शब्दाद् रथिकस्यापि प्रत्ययः किन्न स्याद् इति चेत् ? मैवम् । “रूढ़िर् योगार्थम् अपहरति" इति न्यायात् ।
ननु विशिष्ट-शक्ति-स्वीकारे ‘पङ कज'-पदाद् अवयवार्थप्रतीतिर् मा भूत्, समुदाय-शक्त्यैव 'कमल'-पदवत् पुष्पविशेष-प्रत्ययः स्याद् इति चेत् ? न । 'जहत्स्वार्था तु तत्रैव यत्र रूढिर विरोधिनी" इति अभियुक्तोक्तेः । अवयवार्थ-संवलित-समुदाया पद्मे शक्ति-स्वीकारात् । अत एव चतुर्विधः शब्दः । यथा-'रूढः', 'योगरूढः', 'यौगिकः', 'यौगिकरूढश्च' । “अवयवार्थम् अनपेक्ष्य समुदाय-शक्ति-मात्रेण अर्थ-बोधकत्वं रूढत्वम्'- 'रथन्तरम्' इत्यादौ। "अवयवार्थ-संवलित-समुदाय-शक्त्या अर्थबोधकत्वं योगरूढत्वम्'- 'पङ कजम्' इत्यत्र । 'अवयव. शक्त्यैव अर्थ-बोधकत्वं यौगिकत्वम्'-'पाचिका' 'पाठिका' इत्यादौ । “अवयव-शक्त्या समुदाय-शक्त्या च अर्थ-बोधकत्वं यौगि करूढत्वम्'-मण्डपान-क-परोऽपि
गृह-विशेष-परोऽपि 'मण्डप' शब्द उदाहरणम्, इति विवेकः । 'रथन्तर' शब्द से रथिक' का भी ज्ञान क्यों नहीं होता ? - यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि "रुढ़ि-(प्रसिद्धि) 'यौगिक' अर्थ को दूर कर देती है” यह न्याय है।
विशिष्ट (समुदाय) में (वाचकता) शक्ति मानने पर 'पङ कज' शब्द से अवयवों के अर्थ की प्रतीति नहीं होनी चाहिये, (केवल) समुदाय को शक्ति से ही, 'कमल' पद (से अवयवार्थ-ज्ञान के बिना ही विशिष्ट पुष्प-ज्ञान) के समान, पुष्प-विशेष का ज्ञान होना चाहिये- यह कहना उचित नहीं है, क्योंकि "जहत्स्वार्था वृत्ति' वहीं होती है जहां 'रूढ़ि' विरोधिनी होती है"--विद्वानों के इस कथन के अनुसार (यहाँ 'जहत्स्वार्था' वृत्ति के न होने के कारण) अवयवार्थ से युक्त समुदायार्थ (पक से उत्पन्न) 'पद्म' (के कथन) में ('पंकज' शब्द की) 'शक्ति' मानी गयी है। १. ह.-पाचक-पाठकेत्यादौ ।
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