Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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लकारार्थ-निर्णय
२६३
'लिङ' (लकार) के 'विधि' तथा 'आशीर्वाद' (ये दो) अर्थ हैं। 'यजेत' (यजन करे) इत्यादि में 'विधि' (अर्थ) और 'भूयात्' (हो) इत्यादि में 'पाशीर्वाद' (अर्थ) है। और वह (आशीर्वाद का अभिप्राय) शुभ की कामना, अर्थात् उसकी इच्छा, करना है।
_ 'लोट्' (लकार) का 'विधि' अथवा 'अनुमति' (स्वीकृति) अर्थ है क्योंकि ‘गच्छतु' (जावे) इस प्रकार के कथन में 'अनुमति का विषयभूत जो गमन उसके अनुकूल कृतिवाले (तुम)' इस ज्ञान का अनुभव होता है ।
'लिङ' लकार का दो विभिन्न अर्थों में विधान करते हुए पाणिनि ने दो सूत्रों की रचना की है । पहला है- “विधि-निमन्त्रणामन्त्रणाधीष्ट-सम्प्रश्न-प्रार्थनेषु लिङ" (पा. ३.३.१६१) तथा दूसरा है “प्राशिषि लिङ्लोटौ' (पा. ३.३.१७३) । इन में, इन 'विधि'
आदि अर्थों के वाचक होने के कारण ही, पहले सूत्र से विहित 'लिङ्' को 'विधिलिङ् तथा दूसरे से विहित 'लिङ्' को 'पाशीलिङ्' कहा जाता है । 'विधि, "निमंत्रण' ग्रादि शब्दों के अर्थों की चर्चा ऊपर की जा चुकी है । "आशिषि लिङ्लोटौ" सूत्र में जिस 'पाशी:' पद का प्रयोग हुअा है उसका अभिप्राय है 'अप्राप्त जो अभीष्ट अर्थ उसकी प्राप्ति की इच्छा' । द्र..... "अप्राप्तस्य इष्टार्थस्य प्राप्तुम् इच्छा" (का० ३.३.१७३)। इस प्रकार की इच्छा या 'पाशी:' अपने लिये भी हो सकती है तथा दूसरे के लिये भी। ऐसी इच्छा को ही 'पाशीलिङ' कहा करता है ।
[विधि' शब्द के अर्थ के विषय में भाट्ट-मतानुयायी मीमांसकों का विचार]
विधिः प्रवर्तना इति भाट्टाः । लिनिष्ठो व्यापारः पदार्थान्तरम् लिङपदज्ञानम् एव वा । तस्य प्रवर्तनात्वेन ज्ञानं शब्दाधीन-प्रवत्तौ कारणम् । लिङश्रवणे' 'प्राचार्यो मां प्रवर्तयति' इति ज्ञानाद् गेवानयनादौ प्रवृत्तेः ।
प्राचार्यनिष्ठ-प्रवर्तना तु अभिप्राय-विशेष एव–इत्याहुः । 'विधि' (का अभिप्राय है) प्रवर्तना--यह कुमारिल भटट् के अनुयायी (मीमांसक विद्वान्) मानते हैं। यह (विधि' अथवा 'प्रवर्तना)' 'लिङ' में रहने वाला व्यापार है, तथा एक अन्य पदार्थ है, अथवा 'लिङ' पद ('लिङ्'-लकार युक्त 'तिङन्त' प्रयोग) का ज्ञान ही (विधि') है। उस ('लिङ' पद-ज्ञान) का 'प्रवर्तना' (प्ररणा) रूप से जानना (ही) (उन उन 'लिङ् लकार के) शब्दों (प्रयोगों) से होने वाली 'प्रवृत्ति' का कारण है क्योंकि 'लिङ् लकार' के सूनने पर 'प्राचार्य मुझे (इस कार्य को करने के लिये) प्रेरित करते हैं' इस ('प्रवर्तना' रूप) ज्ञान से गौ को लाने आदि (कार्यों) में १. ह० मि०-ज्ञान। २. ह० में अनुपलब्ध ।
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