Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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कारक-निरूपणम् [कारक की परिभाषा
अथ कारकारिण निरुप्यन्तेकर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च। .
अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकारिण षट् ॥ तत्र 'क्रिया-निष्पादकत्वं कारकत्वम्' । तच्च कर्बादीनां
पण्णाम् अपि । अब कारकों के विषय में विचार किया जाता है। कर्ता, कम, करण, सम्प्रदान और इसी तरह अपादान तथा अधिकरण इस रूप में (प्राचार्यों ने) ६ कारकों का उपदेश किया है । इस प्रसंग में 'कारकत्व' (की परिभाषा) है'क्रिया का उत्पादक होना' और वह (क्रिया-निष्पादकत्व रूप 'कारकत्व') कर्ता आदि (उपरिनिर्दिष्ट) छों का 'धर्म' है ।
क्रियानिष्पादकत्वं कारकत्वम्-वैयाकरण विद्वान् कारक की परिभाषा करते हैं'क्रिया-निष्पादकत्वं कारकत्वम्' अर्थात् क्रिया के उत्पादकरूप 'धर्म' से युक्त होना 'कारकत्वं' है । अभिप्राय यह कि जो भी क्रिया की उत्पत्ति में कारण हो वह कारक है। वस्तुतः अन्य बड़ी बड़ी संज्ञाओं के समान 'कारक' इस बड़ी संज्ञा को भी प्राचार्य पाणिनि ने इसी दृष्टि से स्वीकार किया कि इस अन्वर्थक शब्द से ही अभीष्ट परिभाषा प्रकट हो जाय । द्र० -- "कारकम्' इति महती संज्ञा क्रियते तत्र महत्याः संज्ञायाः करणे एतत् प्रयोजनम् अन्वर्थसंज्ञा यथा विज्ञायेत ----'करोति इति कारकम्' (महा० १.४.२३)।
उपर्युक्त सभी 'कारक' अपने अपने व्यापार अथवा अवान्तर क्रिया के द्वारा किसी न किसी रूप में प्रधान क्रिया की उत्पत्ति में सहायक या कारण बनते ही हैं । इसलिये उन सबका प्रधान क्रिया के साथ अन्वय होता है। जैसे पकाने की क्रिया की दृष्टि से पाक-क्रिया की उत्पत्ति के अनुकूल 'व्यापार' का आश्रय होने के कारण देवदत्त आदि 'कर्ता' क्रिया के उत्पादक है। चावल आदि 'कर्म' में विक्लित्ति (पाचन) का आधार बनना रूप 'व्यापार' है, इन्धन आदि में ज्वाला आदि को धारण करना रूप 'व्यापार' है, पतीली आदि 'अधिकरण' में चावल का आधार बनना रूप 'व्यापार' है। और ये सभी 'व्यापार' पाक क्रिया की उत्पत्ति में कारण या सहायक हैं। इसलिये इन सबमें 'कारकता' है।
क्रिया-निष्पादक को 'कारक' मानने पर यह प्रश्न उपस्थित
के फिर
१.
ह.-अधिकरणे ।
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