Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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नामार्थ
[ शाब्दबोध में शब्द के अपने रूप के भी भासित होने के कारण ही अनुकरण से अनुकार्य के स्वरूप का ज्ञान होता है ]
३६७
"
-स्वरूप
अत एव ग्रनुकरणेन ग्रनुकार्यस्वरूप - प्रतीतिः । तथाहि स्व-सदृश - शब्दमात्र -बोध- तात्पर्य कोच्चारण-विषयत्वम् अनुकरणत्वम्" । "स्व सदृश शब्द प्रतिपाद्यत्वे सति शब्दत्वम् ग्रनुकार्यत्वम्" । तत्र 'अनुकार्यद् अनुकरणं भिद्यते' इति तयोर् भेद-विवक्षायाम् अनुकार्य-स् प्रतिपादकत्वेन ग्रर्थवत्त्वात् प्रातिपदिकात् स्वादि-विधिः । भेद-पक्ष ज्ञापकः " भुवो वुग् लुङ्- लिटो: " ( पा० ६.४.८८ ) इत्यादि-निर्देशः । ' अनुकार्याद् अनुकरणम् अभिन्नम् ' इत्यभेदविवक्षायां च प्रर्थवत्त्वाभावान् न प्रातिपदिकत्वं न वा पदत्वम् । ग्रभेद-पक्ष-ज्ञापकस्तु 'भू सत्तायाम्' इत्यादि-निर्देशः । प्रातिपदिकत्व - पदत्वाभावेऽपि 'भू' इत्यादि साधु भवत्येव 1
इसीलिये (शाब्द बोध में शब्द के स्वरूप के भी भासित होने के कारण ) अनुकरण से अनुकार्य के स्वरूप का ज्ञान होता है । 'अनुकरणता' (की परिभाषा ) है " अपने ( अनुकरण के ) सदृश ( समान वर्णानुपूर्वी वाले अनुकार्यभूत) शब्द का ज्ञान करना ही प्रयोजन है जिसका ऐसे उच्चारण का विषय बनना" । तथा 'अनुकार्यता' ( की परिभाषा ) है " अपने ( अनुकार्य के) सदृश (समान वर्णानुपूर्वी वाले अनुकरणभूत) शब्द से प्रभिधीयमान शब्द होना " । इस तरह 'अनुकार्य से अनुकरण भिन्न होता है' इस रूप में उन दोनों (अनुकार्य तथा अनुकररण में) का भेद बतलाने की विवक्षा होने पर, अनुकार्यभूत शब्द के स्वरूप का बोधक होने तथा ( इस रूप में) अर्थवान् होने के कारण, ( अनुकरणभूत शब्द की ) 'प्रातिपदिक' संज्ञा होने से 'सु' आदि ( विभक्तियों) का विधान ( संभव) होता है । (अनुकार्य तथा अनुकरण के) भेद-पक्ष के ज्ञापक हैं " भुवो वुग्लुङ - लिटो : " (सूत्र में विद्यमान 'भुव:') इत्यादि निर्देश |
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'अनुकार्य से अनुकरण अभिन्न है' इस रूप में अभिन्नता की विवक्षा में, ('भू' की ) अर्थवत्ता के न होने के कारण, 'प्रातिपदिक' संज्ञा नहीं होगी तथा ('प्रातिपदिक' संज्ञा के अभाव में 'सु' आदि विभक्तियों के न आने से 'भू' की) 'पद' संज्ञा भी नहीं होगी । प्रभेद-पक्ष का ज्ञापक है 'भू सत्तायाम्' इत्यादि निर्देश । ( इस पक्ष में ) 'प्रातिपदिक' संज्ञा तथा ( उसके अभाव में 'पद' के सुबन्त न होने से ) 'पद' रांज्ञा के न होने पर भी 'भू' इत्यादि निर्देश (शिष्ट-प्रयुक्त होने के कारण) साधु ही होते हैं ।