Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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नामार्थ
४०३
सम्बन्धेन इति गृहाण । यथा मैत्र-सदृश-पिण्ड-दर्शने मैत्रस्मरणम् एवं 'भू' इत्याद्य अनुकरण-ज्ञाने तादृश-अनुकार्यस्य ज्ञानम् इति संक्षेपः ।
इति नामार्थः (अभेद पक्ष में) 'अनुकार्य' के स्वरूप की बोधकता के न होने के कारण 'अनुकरण'-भूत शब्द से 'अनुकार्य' (-भूत शब्द) के स्वरूप का ज्ञान कैसे होता है ? (यदि यह पूछा जाय तो) उसका उत्तर यह है कि 'सादृश्य' नामक सम्बन्ध से ('अनुकरण 'शब्द' अनुकार्य शब्द के स्वरूप का बोधक होता है)। जैसे-- मैत्र के समान किसी मूत्ति को देखने से मैत्र का स्मरण हो जाता है इसी प्रकार 'भू' इत्यादि 'अनुकरण' (-भूत शब्दों) का ज्ञान होने पर उस प्रकार के (समान अानुपूर्वी वाले) 'अनुकार्य' (-भूत शब्द स्वरूप) का ज्ञान होता है। यह ('नाम' शब्दों के अर्थों का विवरण) संक्षेप में है।
__प्रश्न का अभिप्राय यह है कि 'अनुकरण'-भूत शब्दों में, 'अनुकार्य' से अभिन्न होने के कारण, 'अनुकार्य' के स्वरूप को 'अभिधा' आदि वृत्तियों से कहने की शक्ति नहीं रहती। ऐसी स्थिति में 'अनुकरण' शब्दों से 'अनुकार्य' शब्दों के स्वरूप का ज्ञान किस तरह होता है ?
प्रश्न के उत्तर में यहाँ यह कहा गया कि, 'वाचकता' शक्ति न होने पर भी, अनुकरण' तथा 'अनुकार्य' में जो वर्णानुपूर्वी इत्यादि की समानता होती है उस समानता या 'सादृश्य' के कारण 'अनुकरण' शब्द 'अनुकार्य' शब्द के स्वरूप का ज्ञान करा देता है। जिस प्रकार मंत्र के सर्वथा समान मूर्ति को देख कर मंत्र का स्मरण या ज्ञान हो जाता है उसी प्रकार, वाचक न होने पर भी, 'अनुकरण' शब्द 'अनुकार्य' शब्द का स्मारक या बोधक हो जाता है।
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