Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा [भू सत्तायाम्' इत्यादि प्रयोगों में 'भू' जैसे विभक्ति-रहित प्रयोग असाधु नहीं हैं]
ननु 'अपदं न प्रयुजीत' इति भाष्याद् असाधु इदम् इति चेत् ? न । 'अपदम्' इत्यस्य 'अपरिनिष्ठितम्' इत्यर्थः । 'परिनिष्ठितत्वं' च "अप्रवृत्त-नित्य-विधि-उद्देश्यतावच्छेदक-अनाक्रान्तत्वम् । तद् यथा-'देवदत्तो भवति' इत्यादौ "तिङ् अतिङ:” (पा० ८.१.२८) इति निघाते जाते प्रतिङन्त-पद-पर-तिङन्तत्वरूप- उद्देश्यतावच्छेदक-सत्त्वे अपरिनिष्ठितत्व-वारणाय 'अप्रवृत्त' इति । 'स्वर'ति." (पा० ७.२.४४) इत्यादि-विकल्प-सूत्रस्य पाक्षिक-प्रवृत्तौ 'सेद्धा' इत्यादाव् असाधुत्व-वारणाय 'नित्यविधि' इति । अभेदपक्षे तु "अर्थवद्" (पा० १.२.४५) इति सूत्रस्य अर्थवत्त्वरूप-उद्देश्यतावच्छेदक-अनाक्रान्तत्वात् सूत्रप्रवृत्ताव् अपि 'भू' इत्यादि परिनिष्ठितम् । परिनिष्ठित
साधु-शब्दौ पर्यायौ। 'अपदं न प्रयुजीत' (जो शब्द 'पद' नहीं हैं उनका प्रयोग न किया जाय) भाष्य (के इस कथन) से यह ('भू सत्तायाम्' इत्यादि प्रयोगों ये विद्यमान 'भू' इत्यादि विभक्तिरहित निर्देश) असाधु है-यदि यह कहा जाय तो? वह ठीक नहीं है। क्योंकि 'अपद' का अर्थ है 'अपरिनिष्ठित' । तथा 'परिनिष्ठितत्व' (की परिभाषा) है "अप्रवृत्त तथा नित्यरूप से विधान करने वाले (सूत्र) की 'उद्देश्यता' (विषयता) के 'अवच्छेदक' (धर्म) से युक्त न होना"। 'देवदत्तो भवति' (देवदत्त है) इत्यादि (प्रयोगों के 'भवति' जैसे शब्दों) में "तिक अतिङः" इस सूत्र से सर्वानुदात्तता के हो जाने पर (भी) 'अतिङन्त पद से परे तिङन्त पद का होना रूप' उद्देश्यता (विषयता) के 'अवच्छेदक' (धर्म) के बने रहने के कारण 'भवति' में 'अपरिनिष्ठितता' के निवारण के लिये (इस परिभाषा में) 'अप्रवृत्त' यह पद रखा गया। “स्वरति-सूति-सूयति-धू-उदितो वा' इत्यादि विकल्प सूत्र ('इट्' आगम का विकल्प से विधान करने वाले सूत्र) की ('सेधिता' इत्यादि में) पाक्षिकरूप से प्रवृत्ति हो जाने पर 'सेद्धा' इत्यादि (प्रयोगों) में असाधुत्व ('अपरिनिष्ठितत्व') के निवारणार्थ (उपर्युक्त परिभाषा में) 'नित्य विधि' शब्द रखा गया। (इस तरह) अभेद पक्ष में "अर्थवद् अधातुर्-अप्रत्ययः प्रातिपदिकम्" इस सूत्र की अर्थवत्तारूप, ‘उद्देश्यता' में रहने वाले, 'धर्म' से रहित होने के कारण ('अर्थवत्०” इस) सूत्र के प्रवृत्त न होने पर भी 'भू' १. ह०-अपरिनिष्ठित । २. ह.-स्वरति-सूति-सूयति ।
ह०-अप्रवृत्तौ।
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