Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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लकारार्थ-निर्णय
उद्देश्यत्व-योग्यता-सत्त्वेऽपि तद्विशेषणाभावान् न कर्मत्वम् तद् विशेषश्च व्यापारसमकालिकस् तटस्थजनगम्यः । किं च ईदृशस्थले तदविशेषवत्त्वेऽपि निषेध एव अनुभवसिद्ध इति' 'काशीं न गच्छति' इति किम अनुपपन्नम ?
('भूत' 'भविष्यद्', 'वर्तमान' इन) तीनों कालों में जो काशीगमन-से रहित है ऐसे चैत्र के लिये 'काशों गच्छति चैत्रः' (चैत्र काशी जाता है) इस प्रयोग के निवारणार्थ (ऊपर 'कर्म' की परिभाषा में 'योग्यता' के साथ) 'विशेष' पद रखा गया है। इसलिये 'फल' को प्राश्रयता की दृष्टि से उद्देश्य बनने की योग्यता काशी में होने पर भी योग्यता विशेष के न होने के कारण (काशी की 'कर्म' संज्ञा नहीं होती और वह योग्यता-विशेष' अपने आश्रय में 'व्यापार' के समय रहा करता है तथा ('कर्ता' से भिन्न) तटस्थ व्यक्ति (जो 'व्यापार' नहीं कर रहा है उस ) के द्वारा ज्ञातव्य है। इस के अतिरिक्त ऐसे स्थलों में 'योग्यताविशेष' के होने पर भी निषेध ही अनुभव (व्यवहार) के द्वारा प्रमाणित है । इसलिये 'काशीं न गच्छति' इस प्रयोग में क्या असङ्गति है ?
पहा कहा
'कर्म' की परिभाषा में ऊपर 'योग्यता' के साथ जो 'विशेष' पद का संयोजन किया गया उसका प्रयोजन बताते हुए यहाँ यह कहा गया कि उस चैत्र के लिये, जिसका काशीगमन तीनों कालों में असम्भव है, 'चैत्रः काशी गच्छति' यह प्रयोग में होने लगे । परिभाषा में 'विशेष' पद के न रहने पर काशी की 'कर्म' संज्ञा इस लिये हो जाती कि फलाश्रयता रूप से उद्देश्य बनने की योग्यता तो उसमें भी है ही। हाँ 'योग्यता-विशेष' नहीं है। यह 'योग्यता-विशेष' क्या है इसे स्पष्ट करते हए यहाँ यह कहा गया कि जिस समय 'कर्ता' अपना 'व्यापार' कर रहा होता है उस समय ही यह 'योग्यता-विशेष' फलाश्रयता रूप से अभीष्ट वस्तु में होता है तथा तटस्थ अर्थात् जो व्यक्ति उस व्यापार को नहीं कर रहा है उसी को इस 'यग्यता-विशेष' का ज्ञान हो पाता है, दूसरों को नहीं। परन्तु नागेश की यह 'योग्यताविशेष' वाली बात बहुत सुसंगत एवं संयुक्तिक नहीं प्रतीत होती। यदि 'कर्म कारक की उपर्युक्त परिभाषा में 'योग्यताविशेष' पद न भी रखा जाय तो भी 'चैत्र: काशी गच्छति' यह प्रयोग नहीं होगा, क्योंकि वक्ता जब यह जानता है कि चैत्र कभी भी काशी नहीं जा सकता तो वह 'चैत्रः काशीं गच्छति' प्रयोग करेगा ही क्यों? वह तो 'काशीं न गच्छति चैत्र:' यही कहेगा। यह अनुभवसिद्ध है।
वस्तुतः 'कर्म' की परिभाषा में 'योग्यताविशेषशालित्वम्' पद का संयोजन बहत आवश्यक नहीं है, क्योंकि 'चैत्रः काशीं गच्छति न प्रयागम्' जैसे प्रयोगों में भी, उपर्युक्त पद्धति से, 'प्रयाग' में उद्देश्यता का आरोप करके कर्मत्व की सिद्धि की जा सकती है। 'विशेष' पद के प्रयोजन की निस्सारता तो स्वयं नागेशभट्ट ने ही यहां अनुभव के आधार पर मान ली है।
१. ह० में अनुपलब्ध ।
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