Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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लकारार्थ-निणय
३११ 'लेट्' (लकार) का तो 'यद्' (सर्वनाम) शब्द का प्रयोग न होने पर ही 'विधि' अर्थ है। क्योंकि “समिधो यजति' (समिधाओं की पूजा करे) इत्यादि (प्रयोगों) में तो 'विधि' अर्थ का ज्ञान होता है परन्तु "देवांश्च याभिर्यजते ददाति च” (जिनसे देवताओं की पूजा करता है तथा दान देता है) तथा “य एवं विद्वान् अमावस्यायां यजते' (जो विद्वान् इस प्रकार अमावस्या में यजन करता है) इत्यादि में विधि' (अर्थ) का बोध नहीं होता।
'लेट्' लकार के जो "विधि' आदि अर्थ हैं उनकी अभिव्यक्ति 'यद्' तथा 'एव' शब्दों के प्रयुक्त होने पर नहीं होती। इसी प्रकार 'अपि' का प्रयोग होने पर भी 'विधि' अर्थ की प्रतीति नहीं होती। मीमांसा दर्शन के "विधि-मंत्रयोर् ऐकार्थ्यम् ऐकशब्द्यात्" तथा "अपि वा प्रयोग-सामर्थ्यात् मंत्रोऽभिधानवाची स्यात्' (२.१.३०-३१) इन सूत्रों की व्याख्या में तंत्रवार्तिककार ने यह निर्णय दिया है कि 'यद्' से युक्त 'पाख्यात' शब्द विधायक न होकर अनुवादकमात्र होते हैं । द्र०
येषाम् पाख्यात-शब्दानां यच्छब्दाद्य पबन्धनात् । विधि-शक्तिः प्रणश्येत्तु ते सर्वत्राभिधायकाः ॥
संभवत: मीमांसकों के इस निर्णय की ओर ही नागेश ने यहां संकेत किया है।
['लुङ' लकार के अर्थ के विषय में विचार
लुङस्तु भूतत्वं क्रियातिपत्तिश्चार्थः । अतिपत्तिर् अनिष्पत्तिर् आपादनरूपा। सा च शक्या। सा च आपादना तर्कः । तर्कत्वं मानसत्व-व्याप्पो जाति-विशेषः ।
'लङ' (लकार) के 'भूतत्व' तथा 'अतिपत्ति' ये दोनों (सम्मिलित) अर्थ हैं। 'प्रतिपत्ति' (का अर्थ) है (क्रिया की) आपादनारूप प्रसिद्धि । और वह ('लुङ') का वाच्य (अर्थ) है। वह आपादना तर्क है तथा तर्क (का स्वरूप) है मानसत्व (-रूप व्यापक जाति) में व्याप्य (एक अवान्तर) जाति-विशेष ।
यहां यह कहा गया है कि 'लुङ् लकार से दो सम्मिलित अर्थों का बोध होता है एक भूतत्व तथा दूसरा क्रिया की अतिपत्ति। इसका अभिप्राय यह है कि 'भूतकाल में क्रिया का सिद्ध या निष्पन्न न होना' यह अर्थ 'लुङ' लकार द्वारा प्रकट होता है । परन्तु क्रिया की इस प्रसिद्धि को 'आपादना', अर्थात् तर्क, के रूप में 'लुङ् लकार द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। जैसे-'एधांश्चेद् अलप्स्यत् प्रोदनम् अपक्ष्यत्' (यदि ईंधन मिला होता तो चावल पकाया होता) यह कहने पर पाकरूप क्रिया की प्रसिद्धि इस तर्क के रूप में होती है १. ह०-मानसव्याप्यो ।
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