Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मजूषा
कि ईंधन नहीं मिले इसलिये चावल नहीं पका । इसी बात को 'सा च आपादना तर्क:' कह कर बताया गया है।
तर्कत्वं मानसत्व-व्याप्यो जातिविशेषः-तर्क की जो यहां परिभाषा दी गई है, उससे तर्क के स्वभाव को प्रकट किया गया है, अर्थात् तर्क मन में रहने वाला विचारविशेष है। इस विचार-विशेष में रहने वाले धर्म को 'तर्कत्व' कहा जायगा। इसी प्रकार मानस में रहने वाले 'धर्म' या 'जाति' को 'मानसत्व' कहा जायगा। 'मानसत्व'-रूप जाति व्यापक है तथा उसकी अपेक्षा 'तर्कत्व' जाति व्याप्य है क्योंकि 'तर्कत्व' 'मानसत्वं' में रहती है। इसलिये नैयायिकों ने अपनी पारिभाषिक शब्दावली में तर्क के स्वरूप को बताते हुए कहा-"तर्कत्वं मानसत्वव्याप्यो जातिविशेषः", अर्थात् यह तर्क एक मानसिक अथवा बौद्धिक व्यापार-विशेष है, जिसके द्वारा तार्किक मनुष्य किसी बात का विशेष ऊहापोह करके विचार करता है ।
लक्षण बताने की दृष्टि से तर्क की परिभाषा की गई है-'व्याप्यारोपेण व्यापकारोपस्तर्कः'। इसका अभिप्राय यह है कि व्याप्य, अर्थात् अल्प देश, में रहने वाले का आरोप करके वहां व्यापक, अर्थात् अधिक देश, में रहने वाले का आरोप करना । जैसे'यदि निर्वह्निः स्यात् निर्धूमः स्यात्' (यदि आग नहीं होगी तो धूया भी नहीं होगा)। यहां आग का अभाव व्याप्य है, तथा धूए का अभाव व्यापक है। ऊपर के 'एधांश्चेद् अलप्स्यत् प्रोदनम् अपक्ष्यत्' उदाहरण में इंधन का अभाव व्याप्य है तथा प्रोदन-पाक का अभाव व्यापक है। इस प्रकार 'व्याप्य'-ईंधन के अभाव-के कथन के द्वारा 'व्यापक'अोदन-पाक-के अभावका कथन हुआ है। इसलिये यहां क्रिया की प्रसिद्धि, आपादना या तर्क के रूप में प्रतीत होती है।
['लुङ् लकार के दोनों अर्थों से सम्बद्ध उदाहरणों का प्रदर्शन एवं विवेचन]
'एधांश्चेद् अलप्स्यत् ओदनम् अपक्ष्यत्' इत्यादौ 'एधकर्मको भूतत्वेन प्रापादना-विषयो यो लाभस्तदनुकूल-कृतिमान्' 'ग्रोदनकर्मको भूतत्वेन प्रापादना-विषयो यः पकिस्तदनुकूलकृतिमांश्च' इति बोधः । भविष्यति क्रियातिपदनेऽपि लुङ्-'यदि सुवृष्टिर् अभविष्यत् तदा सुभिक्षम् अभविष्यत्' इति प्रयोगदर्शनात् । भूतभविष्यत्वयोर्बोधनियमस्तात्पर्यात् । 'यदि स्यात्' इत्यादौ लिङोऽप्यापादनायां शक्तिः, 'यदि निर्वह्निः स्यात् तहि निर्धूमः स्यात्' इत्यादौ तस्याः एव प्रतीतेः।
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