Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
पर भी प्रत्येक व्यक्ति याग में प्रवृत्त नहीं होगा अपितु वही याग करेगा जिसमें 'नियोज्यता' होगी, जो इस प्रकार के विश्वास से युक्त है कि याग, 'अपूर्व' की उत्पत्ति के द्वारा, स्वर्ग का साधन है । यहां नागेश ने 'योग्यता' शब्द का जो प्रयोग किया है वह, पारिभाषिक न होकर 'आकांक्षा' के लिये हुआ है।
[विधि' शब्द के अर्थ के विषय में नैयायिर्को का मत]
'प्रवर्तक-ज्ञान-विषयो विधिर् इति नैयायिकाः' । प्रवर्तकत्वं च कृतिसाध्यत्व-इष्टसाधनत्व-बलवद्-अनिष्टाननुबन्धित्वानां ज्ञानम् । अतस् तेषु लिङ्-शक्तित्रयम् । सुमेरुशृङ्गाहरण-निष्फलाचरण-मधु-विष-सम्पृक्तान्न-भोजनेषु प्रवृत्ति वारणाय यथासङ्ख्यं त्रयाणाम् एव ज्ञानं प्रवर्तकम् ।। __यत्तु समुदिते शक्तिर् एकैवेति तन्न । विशेष्य-विशेषणविनिगमकाभावेन त्रिष्वेव पृथक् शक्तेः । एवं च 'स्वर्गकामो यजेत' इत्यादौ "स्वर्गकामीयो याग: कृतिशाध्यः, इष्ट-साधनं, बलवद्-अनिष्टाननुबन्धी च" इति बोध
-इत्येके । प्रवर्तक (प्रेरक) ज्ञान है विषय (जन्य अथवा उत्पाद्य) जिसका ऐसी विधि' ('विधि' शब्द का अर्थ) है-- यह नैयायिक मानते हैं । और यत्न से साध्य होना, अभीष्ट का साधन होना तथा प्रबल अनिष्ट का उत्पादक न होना----इन (तीनों) का ज्ञान (ही) प्रवर्तकता है। इसलिये इन (तीनों अर्थों) में 'लिङ्' (लकार) की तीन प्रकार की शक्तियां हैं । सुमेरु (पर्वत) की चोटी को लाने, निष्प्रयोजन कार्य करने तथा शहद और विष से मिश्रित अन्न को खाने (जैसे कार्यों) में प्रवृत्ति के निवारण के लिये क्रमशः (उपरिनिर्दिष्ट) तीनों प्रकार के ज्ञानों को प्रवर्तक मानना चाहिये।
जो (यह कहा जाता है कि) तीनों ज्ञानों के समुदाय में एक हो शक्ति है वह ठीक नहीं है। क्योंकि (इन तीनों ज्ञानों में) विशेष्य-विशेषण (प्रधानअप्रधान भाव) के निश्चायक प्रमाण के न होने के कारण अलग अलग तीनों में शक्ति है । इस प्रकार 'स्वर्गकामो यजेत' इत्यादि में याग स्वर्गाभिलाषी (व्यक्ति) के प्रयत्न सेसाध्य है, उस के अभीष्ट स्वर्ग का साधन है तथा किसी प्रबल अनिष्ट का उत्पादक नहीं है, यह ज्ञान होता है-ऐसा कुछ प्राचार्य कहते हैं।
नैयायिक विद्वान 'विधि' को, कार्य में व्यक्ति की प्रवृत्ति का, जनक मानते हैं। अभिप्राय यह है कि 'विधि' का विषय, अर्थात जन्य, है प्रवर्तक ज्ञान । उस प्रवर्तक अथवा १. निस०, काप्रशु० ---प्रवर्तकं ।।
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