Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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लकारार्थ-निणय
२८१
केवल 'लट्' को न मान कर इस विद्वानों ने दो 'धर्मों' की कल्पना की । वे 'लत्व' धर्म से अवच्छिन्न 'अभिवावृत्ति' को तथा 'लट्त्व' धर्म से अवच्छिन्न 'लक्षणावृत्ति' को मानते हैं । अब इन दोनों 'वृत्तियों' के एक साथ ही उपस्थित होने में कोई विरोध नहीं हो सकता क्योंकि जब एक ही 'धर्म' से दोनों वृत्तियां अवच्छिन्न हों तभी दोनों में विरोध हो सकता है, दोनों वृत्तियों का अलग अलग दो अवच्छेदक 'धर्म' मानने पर विरोध नहीं होता। इसीलिये 'दण्डेन' इस पद की तृतीया विभक्ति में 'करणत्व' तथा 'एकत्व' इन दो अर्थों के बोध के लिये दो 'वृत्तियों' की कल्पना की गयी तथा उनके आश्रय के रूप में वहीं दो 'धर्मों' की भी कल्पना की गयी। 'अभिधा'का अवच्छेदक (आश्रय) 'धर्म' 'सुप्त्व' तथा 'लक्षणा' का अवच्छेदक 'धर्म' 'तृतीयात्व' माना गया।
['नश्यति' के अर्थ के विषय में कुछ अन्य विद्वानों का मत]
अन्ये तु 'नश्यति' इत्यादौ लटा नाशसामग्री एव बोध्यते । तेन न चिरनष्टे 'नश्यति' इति प्रसङ गः । अत एव
'विनश्यत्ता विनाशसामग्रीसान्निध्यम्' इत्याहुः प्रामारिणकाः। दूसरे प्रामाणिक विद्वान् यह कहते हैं कि 'नश्यति' इत्यादि (प्रयोगों) में लट्' के द्वारा नाश की सामग्री का ही बोध होता है। इसलिये बहुत पहले नष्ट (पदार्थ) के लिये 'नश्यति' यह प्रयोग नहीं होगा। इसीकारण 'विनश्यता' (का अर्थ किया जाता) है 'विनाश की सामग्री का पास में विद्यमान होना' ।
___ यह मत वैयाकरण विद्वानों का है । वे 'नश्' धातु का अर्थ नाशरूप 'फल' तथा विनाशक सामग्री का एकत्रित होना रूप 'व्यापार' मानते हैं । इस विनाशक सामग्री के एकत्रित होने रूप, 'व्यापार' में 'लट्' के अर्थ 'वर्तमान' काल का अन्वय होगा। इस प्रकार विनाश सामग्री के होने पर 'नश्यति', उसके बीत जाने पर 'नष्ट:' तथा भविष्य में उसके उपस्थित होने पर 'नक्ष्यति' इत्यादि प्रयोग होंगे। द्र० – “घटो नश्यति' इत्यादिघटाभिन्नाश्रयको नाशानुकूलो व्यापार इति बोधः । स च व्यापारः प्रतियोगित्वविशिष्ट-नाश-सामग्रीसमवघानम् । अत एव तस्यां सत्यां 'नश्यति', तदत्यये 'नष्टः, तद्भावित्वे 'नक्ष्यति' इति प्रयोगः” (वभूसा० पृ० ४७) । वैयाकरणों का मत होने के कारण ही संभवतः नागेश ने यहां इन वैयाकरण विद्वानों के लिये 'प्रामाणिकाः' विशेषण का प्रयोग किया है।
['पाख्यात' (लकार) से होने वाले अर्थ-बोध के विषय में वैयाकरणों, मीमांसकों तथा नैयायिकों के विभिन्न वाद]
आख्यातात् क्रियाविशेष्यको बोध इति वैयाकरणा भाटटाश्च । प्राद्यनये धात्वर्थः क्रिया। 'चैत्रःतण्डुलं पचति' इत्यादितः 'चैत्रकर्तृ कतण्डुलकर्मकपाकः' इति धीः ।
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