Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
अन्त्यनये भावना क्रिया प्रत्ययार्थः । 'चैत्रीयपाककरणिका तण्डल कमिका भावना' इति बोधः । प्रथमान्तार्थविशेष्यक एव बोधः । 'प्रोदनकर्मकपाकानुकूलकृतिमांश्चैत्रः' इति नैयायिकाः । द्वितीयाद्यर्थकर्मकरणत्वादेः क्रियायामेव
सर्वमतेऽन्वयः । तिङन्त (पदों) से क्रिया है 'विशेष्य' (प्रधान) जिसमें ऐसा ज्ञान होता हैऐसा वैयाकरण तथा भाट्टमतानुयायी मीमांसक कहते हैं। प्रथम (वैयाकरणों) के मत में धातु का अर्थ 'क्रिया' है। 'चैत्रः तण्डलं पचति' (चत्र चावल पकाता हैं) इत्यादि (प्रयोगों) से “चैत्र है 'कर्ता' जिसमें तथा तण्डुल है 'कर्म' जिसमें ऐसी पाक क्रिया" यह ज्ञान होता है ।
अन्तिम (भाट्ट मतानुयायी मीमांसकों के) मत में 'भावना' रूप 'क्रिया' प्रत्यय का अर्थ है (धातु का नहीं)। "चैत्र का पाक है 'करण' जिस में तथा तण्डुल है 'कर्म' जिस में ऐसी क्रिया' (भावना)" यह ज्ञान (भाट्ट मीमांसकों के मत में) होता है।
प्रथमान्त (पद) का अर्थ जिसमें प्रधान है ऐसा ही ज्ञान 'पाख्यात' पद से होता है, (अर्थात्) “चावल है 'कर्म' जिसमें ऐसे पाक के अनुकूल 'यत्न' वाला चैत्र" यह बोध होता है-ऐसा नैयायिकों का मत है ।।
द्वितीया आदि विभक्तियों के अर्थ 'कर्मत्व', 'करणत्व' आदि का सभी के मत में 'क्रिया' में ही अन्वय होता है।
वैयाकरण तथा मीमांसक दोनों ही यह मानते हैं कि 'पाख्यात' से क्रिया-प्रधान अर्थ की प्रतीति होती है परन्तु दोनों की विवेचना-पद्धति में मौलिक अन्तर है । वैयाकरण क्रिया ('व्यापार') को धातु का अर्थ मानता है तथा 'सङ्ख्या'-विशेष, 'काल'-विशेष, 'कारक' विशेष तथा कहीं-कहीं केवल 'भाव' (शुद्ध धात्वर्थ) को 'पाख्यात' ('लकार') का अर्थ मानता है । इसलिये वैयाकरणों की दृष्टि में 'चैत्र: तण्डुलं पचति' वाक्य से ऐसी पाक क्रिया की प्रतीति होती है जिसका 'कर्ता' चैत्र है तथा तण्डुल 'कर्म' है।
'अन्त्य-नये . भावनेति बोधः- भाट्टमतानुयायी मीमांसक विद्वान् भी यद्यपि 'पाख्यात' पद से क्रिया-प्रधान अर्थ की ही अभिव्यक्ति होती है ऐसा मानते हैं । परन्तु उनकी दृष्टि में 'क्रिया' अथवा 'भावना', धातु का अर्थ न होकर 'लिङ्' आदि प्रत्ययों का अर्थ है तथा 'फल' धातु का अर्थ है। जैसे- 'पच्' धातु के प्रयोग में जो विक्लित्ति(पकना) रूप 'फल' वह धातु का अर्थ है तथा इस विक्लत्ति के अनुकूल जो पाक 'व्यापार' है वह प्राख्यात या 'लिङ्' प्रत्यय का अर्थ है।
भावना- मीमांसक भावना' को 'लकार' का अर्थ मानते हुए उसे 'शाब्दी' तथा 'प्रार्थी' भेद से दो प्रकार का मानते हैं । 'लिङ् लकार के प्रयोगों में नियमत: यह प्रतीत
१.
ह.
अन्य
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