Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूपा
['लुट्' तथा 'लुट् लकार से प्रकट होने वाले भविष्यत्' काल को परिभाषा]
लुट्लुटोस्तु भविष्यत्कालः। भविष्यत्त्वं वर्तमान-प्रागभाव-प्रतियोग्युत्पत्तिकत्वम् । उत्पत्तौ च देशविशेषः कालविशेषश्च अधिकरणत्वेन अन्वेति । 'गृहे घटो भविता', 'अद्य घटो भविष्यति' इत्यादौ धातुना उत्पत्तिः प्रत्याय्यते, वर्तमानप्रागभावप्रतियोगित्वम् श्राश्रयत्वं च प्रत्ययेन । 'गृहाधिकरणक-वर्तमान-प्रागभाव-प्रतियोग्युत्पत्त्याश्रयो घट:', 'अद्यतन-प्रागभावप्रतियोग्युत्पत्त्याश्रयो घट:' इत्यन्वयबोधात्। वर्तमानप्रागभाव-प्रतियोगित्वमात्रस्य लुडाद्यर्थत्वे श्वो गृहे समुत्पद्य परश्वः प्राङगणे' गमिष्यति
मैत्रे 'परश्वः प्राङ्गणे मैत्रो भविष्यति' इति प्रसङ गः । 'लुट' तथा 'लट' (लकारों) का तो 'भविष्यत्' काल अर्थ है । 'भविष्यत्' काल (का लक्षण) है वर्तमानकालीन जो प्रागभाव उसके प्रतियोगी' 'उत्पत्ति' का आश्रयभूत काल । (यहां) 'उत्पत्ति' में देश विशेष तथा कालविशेष अधिकरण रूप से अन्वित होता है। 'गृहे घटो भविता' (घर में घड़ा उत्पन्न होगा) तथा 'अद्य घटो भविष्यति', (आज घड़ा उत्पन्न होगा) इत्यादि (प्रयोगों) में ('भू') धातु से 'उत्पत्ति' (रूप अर्थ) ज्ञात होता है और वर्तमानकालीन 'प्रागभाव' की 'प्रतियोगिता' तथा ('प्रतियोगी' 'उत्पत्ति' की) अाश्रयता का ज्ञान (क्रमशः 'लुट्' तथा 'लुट्') प्रत्ययों (लकारों') द्वारा होता है क्योंकि (इन प्रयोगों से क्रमश:) “गृह है 'अधिकरण जिसका ऐसी, तथा जो वर्तमानकालीन 'प्रागभाव' की 'प्रतियोगिनी' है उस, उत्पत्ति का आश्रय घट' एवं “आज (दिन में) होने वाली तथा वर्तमानका तीन 'प्रागभाव' की प्रतियोगिनी जो 'उत्पत्ति' उसका प्राश्रय घट'' यह शाब्दबोध होता है। यदि केवल वर्तमानकालीन 'प्रागभाव' को प्रतियोगिता' को 'लुट' अादि ('लट') का अर्थ माना जाय तो (पाने वाले) कल को घर में उत्पन्न होकर परसों आँगन में जाने वाले मंत्र के लिये 'परश्व: प्राङ्गणे मैत्री भविष्यति' (परसों आङ्गन में मैत्र होगा) यह (प्रयोग) होने लगेगा।
'भूत'काल की परिभाषा के समान ही 'भविष्यत्'काल की परिभाषा के विषय में भी प्राचीन तथा नवीन नैयायिकों में पर्याप्त विवाद है। प्राचीन नैयायिकों ने यहां भी 'उत्पत्ति'पद के बिना ही भविष्यत्काल की परिभाषा प्रस्तुत की थी। द्र0 - "भविष्यत्त्वं च
१. ह.-उत्पत्तिः । २. ह. में “घटो भविता अद्य घटो भविष्यति" के स्थान पर 'घटो भविष्यति भविता इति" पाठ है। ३. ह.-प्राङ्गणे ।
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