Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दश-लकारादेशार्थ-निर्णय
२५७
सकता क्योंकि 'सम्प्रश्न' में 'प्रेरणा' अर्थ न होने के कारण उसे 'प्रवर्तना के अन्तर्गत नहीं माना जा सकता। इसलिये "प्रवंतना सम्प्रश्न योलिङ' यह सूत्र बनाया जा सकता था। यदि भर्तृहरि के नाम से उद्धत भट्ठोजि दीक्षित की उपरिनिर्दिष्ट कारिका के 'चतुर्वपि' पद पर ध्यान दिया जाय तब तो 'प्रवर्तना-सम्प्रश्नप्रार्थनेषु लिङ' इस रूप में सूत्र बनाया जाना चाहिये । परन्तु 'प्रवर्तना' में ही में ही 'प्रार्थना' का अर्थ भी समाविष्ट हो जाता है इसलिये वहाँ 'चतुर्यु' को 'पंचसु' का उपलक्षरण माना जा सकता है।
प्राचार्य पाणिनि ने केवल लाघव को ही सूत्ररचना में एक मात्र प्रमुखता नहीं दी थी अपितु सरलता और सुप्पटता की दृष्टि से भी विचार किया था। इसीलिये 'प्रवर्तना' (प्रेरणा) के विविध भेदों के प्रदर्शनार्थ अथवा 'विधि' आदि शब्दों के 'प्रवृत्तिनिमित्त'रूप विशिष्ट अर्थों को 'लिङ' लकार का वाच्यार्थ बनाने की दृष्टि से इन इन सभी शब्दों का निर्देश पारिणनि ने किया। इसी बात का उल्लेख भट्टोजि दीक्षित ने निम्न कारिका में किया है :
न्यायव्युत्पादनार्थं वा प्रपञ्चार्थम् अथापि वा । विध्यादीनाम् उपादानं चतुर्णाम् आदितः कृतम् ।।
(वैभूसा० पृ० १६० में उद्धृत)
['प्रवर्तना' की परिभाषा]
प्रवर्तनात्वं च प्रवृत्तिजनकज्ञानविषयतावच्छेदकत्वम् । तच्चेष्टसाधनत्वमेव इति तदेव लिर्थः । न तु कृतिसाध्यत्वम्, तस्य यागादौ लोकत एव लाभाद् इति अन्यलभ्यत्वात् । न च बलवदनिष्टाननुबन्धित्वम्, द्वषा
भावेन अन्यथासिद्धत्वाद्-इत्यन्यत्र विस्तरः । प्रवर्तनात्व (का अभिप्राय) है (कार्य में) प्रवृत्ति के उत्पादक ज्ञान की विषयता का अवच्छेदक (बोधक) होना। और वह (अवच्छेदकता) 'इष्ट साधनता' हो है । इसलिये वह ('इष्टसाधनता') ही 'लिङ्' का अर्थ है । 'यत्न-साध्य' होना तो ('लिङ' का अर्थ) नहीं है क्योंकि उस ('यत्नसाध्यता' रूप अर्थ) का, याग आदि में, लोक से ही ज्ञान हो जाने के कारण वह (अर्थ) अन्य (लोक) के द्वारा लभ्य (ज्ञेय) है । और 'प्रबल अनिष्ट का उत्पादक न होना' (भी 'लिङ' का अर्थ) नहीं है क्योंकि (कार्य विशेष-विषयक प्रवृत्ति में) द्वेष का प्रभाव कारण है इसलिये वह (बलवान् अनिष्ट की अनुत्पादकता रूप अर्थ भी) 'अन्यथासिद्ध' है। यह विचार अन्यत्र (मंजूषा
आदि में) विस्तार से किया गया है। १. निस०, काप्रशु०-साधनत्वस्य॑व । २. ह०-वा।
For Private and Personal Use Only