Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजुषा
वस्तुतस्तु अनुप्रयुक्तानाम्....."क्रियासामान्यवाचकत्वम् एव :-पर यदि इन 'अनुप्रयुक्त' धातों को केवल 'क्रिया'-सामान्य का वाचक माना जाता है तो 'एधाञ्चक्र' का अर्थ होगा "वृद्धि रूप 'फल' के अनुकूल होने वाले 'व्यापार' से अभिन्न सामान्य 'फल' के अनुकूल 'व्यापार”। स्पष्ट है कि 'एधाञ्के' जैसे प्रयोगों का इतना विस्तृत अर्थ मानने में गौरव है। इसलिए नागेश ने 'वस्तुतस्तु' कह कर दूसरा विकल्प प्रस्तुत किया जिसका अभिप्राय है कि ये 'अनुप्रयुक्त' धातुएँ 'फल'-रहित सामान्य-क्रिया' के वाचक हैं । अत: 'फल'-शून्य 'क्रिया' का वाचक मानने पर 'एवाञ्चके' का अर्थ होगा"वृद्धि के अनुकूल जो 'व्यापार' उससे अभिन्न 'व्यापार", जिसमें निश्चित ही पहले की अपेक्षा लाघव है। पहले विकल्प में 'अनुप्रयुक्त 'धातुओं का 'व्यापार'-सामान्य अर्थ मानते हुए भी वहां 'व्यापार' को 'फल' शून्य नहीं माना जाता।
सकर्मकाकर्मत्व...."क्रियेति बोधः - यह पूछा जा सकता है कि यदि 'अनुप्रयुक्त' धातुएँ 'फल'-रहित सामान्य क्रिया के वाचक हैं तो फिर उनकी 'सकर्मकता' तथा 'अकर्मकता' का निर्णय कैसे होगा ? इस प्रश्न का उत्तर यहां यह दिया गया है । 'पाम्प्रत्यय' की 'प्रकृति'भूत जो एध्' आदि धातुएँ हैं यदि वे 'सकर्मक' हैं तो 'अनुप्रयुक्त' धातु को भी सकर्मक माना जाएगा तथा यदि 'आम्' प्रत्यय की प्रकृति' भूत धातु 'अकर्मक' है तो उसके साथ 'अनुप्रयुक्त धातु 'अकर्मक' मानी जाएगी। इस प्रकार इन धातुओं की 'सकर्मकता' तथा 'अकर्मकता' के निर्णय में कोई कठिनाई नही होगी।
इस रूप में 'एवाञ्चके चैत्रः' इस प्रयोग में शाब्दबोध होगा “एकत्व' संख्या से युक्त एवं 'परोक्षता' से विशिष्ट चैत्र है 'कर्ता' जिसका तथा 'भूत' अनद्यतन काल है 'अधिकरण' जिसका (अर्थात् 'भूत' अनद्यतन काल में होने वाली) ऐसी 'वृद्धि' रूप 'क्रिया"।
['लुट् के 'आदेश' भूत 'ति' के अर्थ तथा 'भविष्यत्व' की परिभाषा के विषय में विचार]
लुडादेशस्य तु भविष्यदनद्यतनार्थोऽधिक: । शेषं लवत् । भविष्यत्त्वं च वर्तमानप्रागभावप्रतियोगिक्रियोपलक्षितत्वम् ।
'लुट' (लकार) के 'आदेश' ('तिङ') का तो 'भविष्यद् अनद्यतन' अर्थ अधिक हैं । शेष (अर्थ- संख्या' तथा 'कारक') 'लट्' के ('आदेश'भूत 'तिङ' के अर्थों के) समान है । भविष्यत्त्व' (की परिभाषा) है वर्तमान (कालीन) 'प्रागभाव' की 'प्रतियोगी' क्रिया के द्वारा उपलक्षित होना।
'लुट' लकार का विधायक सूत्र है-"अनद्यतने लुट्” (पा० ३.३.६ पृ) इस सूत्र में 'भविष्यति गम्यादयः' (पा० ३.३.३) से 'भविष्यति' पद की अनुवृत्ति प्रारही है तथा 'धातोः' (३.१.९१) से 'धातु' का अधिकार है ही। 'भविष्यति' तथा तथा 'अनद्यतने' पदों का अन्वय धात्वर्थभूत क्रिया में होगा इस प्रकार "अनद्यतने लुट" का
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