Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
परोक्षत्वं च व्यभिचाराभावात् -- यहाँ यह विचार किया गया है कि 'परोक्ष' विशेषण का सम्बन्ध किसके साथ माना जाय ? यदि उसे किया का विशेषण माना जाता है तो वह अनावश्यक है क्योंकि क्रिया तो सदा ही 'परोक्ष' होती है--कभी भी वह प्रत्यक्ष नहीं होती। द्र० --- "क्रिया नाम इयम् अत्यन्तापरिदृष्टा अनुमानगम्या अशक्या पिण्डीभूता निदर्शयितुम् । यथा गर्भोऽनिल ठितः' (महा० १.३.१ तथा ३.२.११५) । भाष्यकार पतंजलि ने भी 'परोक्षे लिट्' सूत्र पर इस प्रश्न को उठाया है तथा यह निर्णय दिया है कि 'परोक्ष' विशेषण 'साधनों' का है । पतंजलि के इस निर्णय को ही नागेश ने यहाँ अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है। कौण्डभट्ट के निम्न शब्द भी यहां तुलना के लिये द्रष्टव्य है :- 'व्यापाराविष्टानां क्रियानुकूल-साधनानाम् एव अत्र पारोक्ष्यं विवक्षितम्" (वभूसा० पृ० १५३)।
['कृ', 'भू' आदि के अनुप्रयोग के स्थलों में 'कृ' 'भू', प्रादि धातुओं तथा 'पाम्' प्रत्यय के अर्थ का निर्णय और उनके पारस्परिक अन्वय का स्पष्टीकरण]
कृभ्वाद्यनुप्रयोगस्थले कृभ्वसां क्रियासामान्यम् अर्थः । अाम्प्रकृतेस्तु तत्तत्क्रियाविशेषः । समान्यविशेषयोरभेदान्वयः । अकर्मकप्रकृतिक-ग्रामन्तप्रयुक्त-कृभ्वसाम् श्रमिकैव क्रिया । वस्तुतस्तु अनुप्रयुक्तानां कृभ्वसां फलशून्यक्रियावाचकत्वमेव । सकर्मका'कर्मकत्व व्यवहारस्तु अाम्प्रकृतिभूतधातोरेवेति निष्कर्षः । एवञ्च ‘एधाञ्चक्रे चैत्रः' इत्यत्र “एकत्वावच्छिन्नपरोक्षत्वावच्छिन्नचैत्रकर्त का भूतानद्यतनकालाधिकरणिका वृद्धभिन्ना क्रिया" इति बोधः । परोक्षत्वं च साक्षात्कृतम् इत्येतादृशविषयताशालिज्ञानाविषयत्वम् । भूतानद्यतनत्वं च अद्यतनाष्टप्रहरीव्यतिरिक्तत्वे सति भूतत्वम् ।
'क' 'भू' आदि ('अस्) के 'अनुप्रयोग' के स्थलों ('एधाञ्चक्र', एधाम्बभूव', 'एधामास') में 'कृ', 'भू', 'अस्' धातुओं का क्रियासामान्य अर्थ ही है। 'ग्राम्' प्रत्यय की प्रकृति (एध्' आदि धातुओं) का तो अर्थ वे वे विशिष्ट क्रियाएँ' हैं (जिनके वाचक वे वे धातु हैं जिनसे 'पाम्, प्रत्यय पाया है)। (इन) सामान्य तथा विशेष (अर्थों) का (परस्पर) अभेदान्वय होता है। 'अकमक प्रकृति' (धातु) वाले 'आम्' प्रत्ययान्त' के साथ 'अनुप्रयुक्त' 'क', 'भू', 'अस्' (धातुओं) की (वाच्यार्थ भूता) 'क्रिया' भी 'अकर्मक' ही होती है । वास्तविकता १. ह.-सकर्मकत्वाकर्मकत्व
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