Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दश-लकारादेशार्थ-निर्णय
२४३
'वर्तमान-कालता' उपपन्न हो जाती है। इस विषय में महा० (३.२.१२३) तथा वाप० (काल समुद्देश ८०) में विचार किया गया है।
['लिट्' के 'प्रादेश' भूत 'तिङ्' का अर्थ]
लिट्तिङ स्तु भूतानद्यतनकाल: परोक्षत्वं चाधिकोऽर्थः । शेषं लड्वत् । परोक्षत्वं च कारके विशेषणं न तु क्रियायां तस्या अतीन्द्रियत्वेन "लिट्" ("परोक्षे लिट्") (३.२.११५) सूत्रे भाष्ये प्रतिपादनात् व्यभिचाराभावात् ।
'लिट्' (के स्थान पर आने वाले) तिङ' का 'अनद्यतन भूतकाल' तथा परोक्षत्व' अर्थ अधिक है। शेष ('कारक' तथा 'संख्या') 'लट्' (के आदेशभूत 'तिङ्') के समान हैं। ‘परोक्षत्व' विशेषरण कारकों' से सम्बद्ध होता है 'क्रिया' से नहीं क्योंकि “परोक्षे लिट्" (३.२.११५) सूत्र के भाष्य में 'क्रिया' को अतीन्द्रियता का प्रतिपादन किये जाने के कारण, उसमें ('परोक्षता' का कभी भी) अभाव नहीं है।
भूतानद्यतनकाल:-'अद्यतन' तथा 'अन द्यतन' भेद से काल दो प्रकार का माना गया है। ये दोनों ही भेद 'भूत' तथा 'भविष्यत्' दोनों कालों के हैं.---'अद्यतन भूत', 'अद्यतन भूत' तथा 'अन द्यतन भविष्यत्', 'अनद्यतन' भविष्यत्' ।
सामान्यतया आज के समय को 'अद्यतन' (अद्य भवो अद्यतनः) तथा उससे भिन्न काल को 'अनद्यतन' कहा जा सकता है । परन्तु 'अद्यतन' और 'अनद्यतन' की परिभाषा के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् बीती हुई रात्रि के पिछले आधे समय से लेकर पाने वाली रात्रि के पहले ग्राबे समय तक, अर्थात् बीती रात्रि के १२ बजे से लेकर आगामी रात्रि के १२ बजे तक 'अद्यतन' तथा उससे अतिरिक्त काल को 'अनद्यतन' मानते हैं। द्र० -- “अतीतायाः रात्रेः पश्चार्थेन अागामिन्याः पूर्वार्धेन च सहितो दिवसोऽ द्यतनः" (सिकौ० १.२.५७) ।
दूसरे विद्वान् यह मानते हैं कि बीती रात्रि के अन्तिम तीसरे या चौथे भाग से लेकर आने वाली रात्रि के प्रथम तीन या चार भाग तक के साथ पूरा दिन, अर्थात् वीती रात्रि के लगभग ३ या ४ बजे प्रातः से लेकर आगामी रात्रि के ६ बजे रात्रि तक का समय ‘पद्यतन' है तथा उससे भिन्न 'अनद्यतन' । द्र०-एकस्या रात्रेश्चतुर्थो यामो दिवसश्च सर्वो द्वितीयायाश्च रात्रेः प्रथमो यामोऽद्यतन इत्याहुः” (महाभाष्य प्रदीप टीका ३.२.११०) । नागेश को भी 'अद्यतन' की यही परिभाषा अभीष्ट है यह उनकी इसी प्रसंग की पंक्ति -- "भूतानद्यतनत्वं च अद्यतनाष्टप्रहरीव्यतिरिक्तत्वे सति भूतत्वम्" से स्पष्ट है।
For Private and Personal Use Only