Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा इसी प्रकार प्रथम उपस्थित होने वाले अर्थविषयक बौद्धिक अभिसम्बन्ध तथा उसके अनुसार होने वाले भावी शब्द-सम्बन्ध के आधार पर अन्य कार्यों को भी सुसंगत माना जाता है । इन अन्य कार्यों में ही 'धातु' तथा 'उपसर्ग' के सम्बन्ध की बात भी पा जाती है। 'धातु' तथा 'उपसर्ग का बौद्धिक अभिसम्बन्ध पहले उपस्थित होता है। परन्तु उस बौद्धिक सम्बन्ध के आधार पर वक्ता की बुद्धि में विद्यमान रहने वाला विशिष्ट 'धात्वर्थ' उस समय प्रकट होता है, जब वक्ता 'उपसर्ग से युक्त 'धातु' का प्रयोग करता है । इस दृष्टि से भर्तृहरि की ही निम्न कारिका भी द्रष्टव्य है
प्रयोगाहेंषु सिद्धः सन् भेत्तव्योऽर्थो विशेषणः ।
प्राक् तु साधनसम्बन्धात् क्रिया नैवोपजायते ॥ (वाप० २.१८३)
प्रयोग के योग्य 'धातुओं' में, प्रसिद्ध (या बुद्धि में विज्ञात) अर्थ (ही) विशेषणों (विशिष्ट अर्थों के द्योतक 'उपसर्गो') के द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं। (यदि 'कारकों' का पहले बौद्धिक सम्बन्ध न हो तो) 'कारकों' के सम्बन्ध से पहले तो क्रिया होती ही नहीं (फिर 'भू' आदि 'धातुओं' का क्रियात्व कैसे बनेगा ?)। ["चन्द्र इव मुखम्' इत्यादि प्रयोगों में 'चन्द्र' प्रादि पदों को स्वसदृश में 'लक्षणा है" इस कौण्डभट्ट के मत की स्थापना]
'चन्द्र इव मुखम्' इत्यादौ 'चन्द्र' पदस्य स्वसदृशे अप्रसिद्धा शक्तिरेव लक्षणा । "न'-'इव'-युक्तम् अन्यसदृशाधिकरणे०"(परिभाषेन्दुशेखर, परि०सं०७५) इति न्यायात् । 'इव' पदं तात्पर्यग्राहकम् । तात्पर्यग्राहकत्वं च-'स्वसमभिव्याहतपदस्य अर्थान्तरशक्तिद्योतकत्वम्' इति अागतम्
'इव' निपातस्य द्योतकत्वम् । _ 'चन्द्र इव मुखम्' (चन्द्रमा के समान मुख) इत्यादि (प्रयोगों) में ‘चन्द्र' पद की 'चन्द्रसदृश' (अर्थ) में अप्रसिद्ध ('अभिधा') शक्ति रूप 'लक्षणा' है क्योंकि "नत्र -इव-युक्तम्-अन्यसदृशाधिकरणे (तथा ह्यर्थगतिः)" -- 'नत्र' अथवा 'इव' से युक्त (शब्द अपने से) भिन्न (पर अपने) सदृश अर्थ का बोधक होता है क्योंकि ऐसे स्थलों में इसी तरह का ज्ञान होता है"-यह न्याय है। 'इव' पद (चन्द्र पद के) इस तात्पर्य ('चन्द्रसदृश') का ज्ञापक है । 'तात्पर्यग्राहकता' (की परिभाषा) है “अपने समीप के पद की, एक दूसरे अर्थ को कहने की, शक्ति का द्योतक होना" । इस प्रकार 'इव' निपात की द्योतकता प्रमाणित हो जाती
वैयाकरण विद्वान् 'निपातों' को भी, 'उपसर्गों' के समान अर्थ का द्योतक ही मानते हैं वाचक नहीं यह ऊपर प्रतिपादित किया जा चुका है। इसलिये यहाँ यह विचार किया १. ह०, वंमि-शक्तिरूपा।
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