Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लधु-मंजूषा 'शक्ति' की कल्पना करनी पड़ती है-अतः इस पक्ष में लाघव है। इसके अतिरिक्त प्राचार्य पाणिनि के "लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः' इत्यादि सूत्र भी लकारों की वाचकता का ही प्रतिपादन करते हैं क्योंकि उन अभीष्ट अर्थों में 'लकारों' का विधान पारिणनि ने इन सूत्रों द्वारा किया है। जिस प्रकार पाणिनि ने अपने सूत्रों में 'लकारों' के अर्थों का निर्देश किया है उस प्रकार तिब्' आदि 'आदेशों' का नहीं।
परन्तु व्याकरण के विद्वान् नैयायिकों के इस विचार से सहमत नहीं हैं। वे 'तिब्' आदि 'आदेशों' को ही अर्थ का बाचक मानते हैं । नागेश भट्ट ने यहाँ नैयायिकों के सिद्धान्त के विपरीत दो युक्तियों का संकेत किया है। पहली युक्ति यह है कि भाष्यकार पतंजलि ने उच्चारित शब्द को ही अर्थ का वोधक माना है अनुच्चारित को नहीं ।
आख्यात के प्रयोगों में 'तिब' आदि 'आदेशों' का ही उच्चारण होता है 'लकारों' का नहीं इसलिये पतंजति के कथन के अनुसार 'आदेश' 'तिब्' आदि को वाचक मानना चाहिये। दूसरी युक्ति यह है कि लोक में-भाषा के लौकिक व्यवहार में -वक्ता तथा श्रोता दोनों को 'तिब्' आदि 'आदेशों' से अर्थ का ज्ञान होता है, 'लकारों' से नहीं । वस्तुतः अनुभव की बात को ही पतंजलि ने अपने कथन में प्रस्तुत किया है। इस प्रकार अनुभव तथा प्राचार्य पतंजलि के प्रामाणिक कथन के आधार पर 'तिब्' आदि 'आदेशों की पाचकता ही सिद्ध होती है, 'लकारों' की नहीं।
भट्टोजि दीक्षित ने अपनी कारिकाओं में नैयायिकों के उपर्युक्त सिद्धान्त का अनेक युक्तियों द्वारा निराकरण किया है जिनकी विस्तृत व्याख्या कौण्डभट्ट के वैयाकरणभूषणसार (पृ० ४६२-७२) में द्रष्टव्य है।
प्रादेशार्थ स्थानिन्यारोप्य प्रवृत्ति:--परन्तु वैयाकरणसम्मत–'प्रादेशों' की वाचकता-पक्ष में यह प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि 'लकार' अर्थ के वाचक नहीं हैं तो फिर पाणिनि ने "वर्तमाने लट्" तथा "ल: कर्मणि" इत्यादि सूत्रों के द्वारा उन उन विशिष्ट अर्थों के वाचक के रूप में लकारों का विधान क्यों किया ?
इस का उत्तर यह है कि 'तिब' आदि आदेशों में जो अर्थ की वाचकता है उसका, केवल शास्त्रीय प्रक्रिया के निर्वाह के लिए, 'स्थानी' के रूप में कल्पित 'लकारों' में अारोप कर लिया जाता है । इस आरोप की पृष्ठभूमि में ही पाणिनि ने “वर्तमाने लट्" आदि सूत्रों की रचना की, 'लकारों' को वस्तुतः अर्थ का वाचक मान कर नहीं।
['लादेश मात्र के अर्थ तथा उनका परस्पर अन्वय]
तत्र संख्याविशेष-कालविशेष-कारकविशेष-भावाः लादेशमात्रस्य अर्थाः । तथाहि लडादेशस्य वर्तमानकालः, 'शब्' अादि-समभिव्याहारे कर्ता, यक् चिण-समभिव्याहारे
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