Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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निपातार्थ-निर्णय
२१७
अपटो भवति' इत्यर्थके, 'घटो न पट:' इत्यादौ च समासविकल्पाद् असमासेऽपि । अत्र 'अन्योऽन्याभावः' फलितो
भवति । 'पर्युदास (न)' तो अपने समीपस्थ पद के साथ, सामर्थ्य के कारण, समासयुक्त ही होता है । कहीं (कहीं) तो 'यजतिषु ये यजामहं करोति नानुयाजेषु' (अनुयाज याग से भिन्न यागों में यजमान 'ये यजामहे' इस मन्त्र का उच्चारण करता है) इत्यादि (प्रयोगों) में तथा, “घड़ा अवस्त्र है' इस अर्थ वाले, 'घटो न पट:' (घड़ा वस्त्र नहीं है) इत्यादि (प्रयोगों) में, विकल्प से समास का विधान किये जाने के कारण, समासरहित स्थिति में भी 'पर्यु दास नन्' रहता है) । यहां (घटो न पटः' इस प्रयोग में) 'अन्योऽन्याभाव' (घड़े
और वस्त्र की पारस्परिक भिन्नता) 'फलित' अर्थ है ('न' का शाब्दिक अर्थ तो 'आरोप' ही है)।
"यजतिषु ये यजामहं करोति नानुयाजेषु"-- 'पर्यु दास नञ्' प्रायः सदा ही उत्तरपद के साथ समास को प्राप्त हुआ रहता है-यह एक सामान्य स्थिति है । पर कहीं कहीं ऐसे भी प्रयोग मिलते हैं जहाँ समास नहीं होता। उदाहरण के रूप में यहां दो वाक्य दिये गये हैं। पहला है-"यजतिषु ये यजामहं करोति नानुयाजेषु" । इस वाक्य का अभिप्राय यह है कि होता नामक ऋत्विज् अनुयाज यागों से इतर यागों में 'ये यजामहे' इस मंत्र का उच्चारण करता है । यहाँ 'यजति' शब्द, जो अन्य पुरुष एक वचन का क्रिया पद है तथा नाम पद के रूप में व्यवहृत हुअा है, याग सामान्य का वाचक है। इसी प्रकार 'अनुयाज' एक विशिष्ट याग का वाचक है। 'ये यजामहम्' का अभिप्राय है 'ये यजामहे' यह मंत्रांश है प्रारम्भ में जिन मंत्रों के वे 'याज्या' नामक मंत्र । 'करोति' का अर्थ है 'उच्चारण करता है । इस वाक्य के अर्थ के विषय में मीमांसादर्शन के अर्थसंग्रह आदि पुस्तकों में पर्याप्त विचार किया गया है तथा वहाँ निर्णय दिया गया है कि 'न' तथा 'अनुयाज' का परस्पर सम्बन्ध मान कर यहाँ 'पर्युदास'.मानना ही उचित है। इसलिये इस का अर्थ होगा-"अनुयाज' से भिन्न यागों में 'ये यजामहे' नामक मंत्रों का उच्चारण होता करे" । द्र०-"नञोऽनुयाजसम्बन्धम् प्राश्रित्य पर्युदासस्यैव (प्राश्रयणम्) । इत्थं च अनुयाज-व्यतिरिक्त पु यजतिषु 'ये यजामहे' इति मंत्रं कुर्यात् इति वाक्यार्थबोधः" (अर्थसंग्रह-६.८७, पृ० १३०) ।
घटो नः पट:-'पर्यु दास नञ्' में समासाभाव की स्थिति का दूसरा उदाहरण है('घट: अपटो भवति' इस अर्थ की दृष्टि से प्रयुक्त) 'घट: पटो न भवति' यह प्रयोग । यहाँ भी निषेध की प्रधानता न होकर विधि की प्रधानता है क्योंकि कहा यह जा रहा है कि- 'घट: पटत्वाभाववान् भवति' अर्थात् घड़ा पटत्वाभाव वाला है । 'अपट:' का अर्थ है-'पारोपित-पटत्ववान्', अर्थात् जिसमें पटत्व का 'आरोप' किया गया है (वास्तविक पटत्व जिसमें नहीं है) वह घट । इस प्रकार यहाँ विधि की प्रधानता है तथा निषेध अर्थ की अप्रधानता है । इसलिये इसे 'पर्युदास न' का ही प्रयोग मानना चाहिये । पर 'पर्युदास नन्' होते हुए भी यहां 'नम्' का तथा 'पट' का समास नहीं किया गया।
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