Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरुण-सिद्धान्त-परम लघु-मंजूषा "स्वर्गकामोऽश्वमेधेन यजेत" इति ‘विधिः' । क्षुत्प्रतिघातो यद्यपि शशकादिमांसैः श्वादिमांसश्च भवति। तथापि शशकादिमांसैरेव कर्तव्य इति परिसंख्यायते "पञ्च पञ्च-नखा भक्ष्याः" इत्यनेन। नखविदलन-अवहननाभ्यां वीहेनिस्तुषीकरणं प्राप्तम् । तत्र अवहनेन' निस्तुषीकरणं पुण्यजनकम् इति “व्रीहीन्' अवहन्ति' इत्यनेन नियम्यते । यद्यपि 'परिसङ ख्यायां' 'नियमे' च--'स्वार्थहानिः' 'प्राप्तबाधः' 'परार्थकल्पना' इति-दोषत्रयम् । तथापि अनन्यगत्या स्वीक्रियते इति वद्धाः । पञ्च पञ्च-नखा: इत्यस्य नियमत्वेन भाष्ये (महा०, भा० १, पृ० ३६) व्यवहृतत्वादन्य-निवृत्ति-रूप-फलेन ऐक्याच्च 'नियम'पदेन 'परिसंख्या' अपि व्याकरणे गृह्यते इति संक्षेपः ।
इति निपातार्थ-निर्णयः इस विषय में (कुमारिल भट्ट ने) कहा है- "(विधान की) सर्वथा अप्राप्ति में 'विधि' (एक) पक्ष में प्राप्ति होने (तथा एक पक्ष में प्राप्ति न होने) पर 'नियम' तथा उस (प्रभोष्ट) से अन्य में भी विधान की प्राप्ति होने पर 'परिसंख्या' कही जाती है”। ___ "स्वर्गकामोऽश्वमेधेन यजेत' (स्वर्गाभिलाषी व्यक्ति अश्वमेध से यजन करे) यह 'विधि' (वाक्य) है । क्षुधा को निवृत्ति तो यद्यपि खरहे आदि के मांस तथा कुत्ते आदि के मांस से भी हो सकती है फिर भी “पञ्च पञ्च-नखा भक्ष्याः” (पाँच नखवाले पाँच ही जानवर खाने चाहिये) इस वाक्य से खरहे प्रादि (पांच पञ्च-नख वालों) के मांस से ही (भूख की निवृत्ति) करनी चाहिये -- इस तरह 'परिसंख्यान' (परिगणन) कर दिया जाता है । नखों के द्वारा विदलन करके अथवा मूसल से कूट करके (इन दोनों ही उपायों से) धान की भूसी हटायी जा सकती है । उन (दोनों उपायों) में "ब्रीहीन अवहन्ति" (धानों को कूटता है) इस वाक्य से (मूसल के) अवघात (चोट) द्वारा भूसी का हटाना पुण्यजनक है' यह 'नियम' किया जाता है ।
यद्यपि 'परिसंख्या' तथा 'नियम' (के स्थलों) में अपने (वाच्य) अर्थ का परित्याग, (स्वभावतः) प्राप्त का बाध तथा परार्थ अथवा लक्ष्यार्थ की १. ह. में इसके बाद 'व्रीहे.' पाठ अधिक है।
२.
ह.-धान्यम् ।
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