Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
(घट के समुच्चय से युक्त पट) को देखो' । इस प्रकार 'घट' तथा 'च' में विशेषण-विशेष्य सम्बन्ध है-'घट' विशेषण है तथा 'च' विशेष्य है-घट-विशिष्ट जो समुच्चय उससे युक्त जो पट उसे देखो ('घट-समुच्चयवन्तं पटं पश्य')। इस रूप में, 'घट' का अन्वय 'पश्य' क्रिया के साथ न होकर 'च' के साथ होने के कारण, 'घट' में षष्ठी विभक्ति होनी चाहिये।
यह तीसरा दोष वैयाकरणभूषणसार में नहीं मिलता । साथ ही परमलघुमंजूषा के भी कुछ संस्करणों में नहीं मिलता। परन्तु उत्तर पक्ष की "किंच घटं पटं च पश्य' इत्यादौ 'घटम' इत्यस्य क्रियायामेव अन्वयः" इत्यादि पक्तियों को देखने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि यहाँ पलम० के पूर्वपक्ष में “घटपट च पश्य' इत्यादी षष्ठ्यापत्तश्च" इतना पाठ भी अवश्य रहा होगा। अन्यथा उत्तर पक्ष की उपरिनिर्दिष्ट पंक्तियों की संगति नहीं लगती।
वैयाकरणों के मत में ये दोष इसलिये उपस्थित नहीं होते कि वे 'उपसर्गो' के समान 'निपातों' को भी अर्थ का द्योतक ही मानते हैं, अर्थात् 'निपात' के साथ उच्चरित पद ही, अपने अर्थ के साथ-साथ, 'निपात' पदों से द्योतित होने वाले भिन्न-भिन्न अर्थों का भी वाचक बन जाता है। इसलिये 'च' शब्द 'समुच्चय' अर्थ का वाचक न होकर उसका द्योतक मात्र है। 'समुच्चय' अर्थ का वाचक तो स्वयं 'शोभनः' ही है। अतः एक पद के द्वारा ही दोनों अर्थों को उपस्थित कर देने के कारण 'शोभनः' के साथ 'च' का विशेष्य-विशेषण रूप से अन्वय नहीं हो सकता। 'शोभन: समच्चयः प्रयोग तो इसलिये साधु है कि 'समुच्चयः' शब्द जिस अर्थ (संग्रह) का वाचक है उसके साथ 'शोभन:' का विशेष्य-विशेषणरूप से अन्वय हो जाता है। यहां 'शोभनः' विशेष्य है तथा 'समुच्चयः' विशेषण।
इसी तरह 'घटस्य समुच्चयः' के समान 'घटस्य च' प्रयोग भी इसलिये साधु नहीं हो सकता कि यहाँ भी समुच्चय अर्थ को स्वयं 'घट' शब्द ही अपने वाच्य अर्थ के रूप में प्रकट कर देता है---'च' निपात तो केवल उसका द्योतन मात्र करता है। इसलिये 'घटश्च' प्रयोग ही व्युत्पन्न हो सकता है। वस्तुतः 'घटश्च' प्रयोग में दो प्रातिपदिकार्थ होते ही नहीं, जिनका भेद-सम्बन्ध दिखाने के लिये षष्ठी विभक्ति लायी जाये, जबकि 'घटस्य समुच्चयः' प्रयोग में दो प्रातिप्रदिकार्थ हैं जिनमें भेद-सम्बन्ध दिखाने के लिये षष्ठी विभक्ति का प्रयोग आवश्यक है ।
इसी प्रकार 'घटं पटं च पश्य' इस प्रयोग में भी 'घट' का 'च' के साथ अन्वय न होने, अपितु सीधे क्रिया ('पश्य') के साथ अन्वय होने, के कारण वैयाकरणों के मत में तो 'घट' के साथ द्वितीया विभक्ति ही आ सकती है।
[कोण्डभट्ट के प्राक्षेपों को निस्सारता]
तन्न। शब्द-शक्तिस्वभावेन निपातैः स्वार्थस्य परविशेषणत्वेनैव बोधनेन विशेषणान्वयाप्रसङ्गात् ।
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