Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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निपातार्थ-निर्णय
१६३ (प्रयोग) भी स्वीकार करना होगा। इसी प्रकार 'धटं पटं च पश्य' (घड़े और वस्त्र को देखो) इत्यादि प्रयोगों में ('घट' तथा 'पट' शब्दों के साथ) षष्ठी विभक्ति की प्राप्ति होगी।
नागेश भटट् ने यहाँ कौण्डभट्ट-रचित वैय्याकरणभूषणसार के उस स्थल की ओर संकेत किया है जहाँ कौण्डभट्ट ने नैयायिकों के मत- "निपात' अर्थो के वाचक हैं'.-में अनेक दोष दिखाये हैं।
पहला दोष यह है कि, यदि 'निपातों' को अर्थ का वाचक माना जाता है तो जिस प्रकार 'शोभन: समुच्चयः' यह प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार 'शोभनः च' प्रयोग भी किया जाना चाहिये क्योंकि इस मत के अनुसार 'च'' समुच्चय' अर्थ का वाचक है । इसलिये जिस प्रकार 'समुच्चय' शब्द 'समुच्चय' अर्थ का वाचक है तथा विशेष्य है इस कारण उस में 'शोभन' शब्द का विशेषण रूप से अन्वय होता है उसी प्रकार 'च' शब्द के वाच्य अर्थ को भी विशेष्य मानते हुए उसमें भी 'शोभनः' विशेषण का अन्वय सुसंगत मान लिया जाना चाहिये। द्र० -- "शोभनः समुच्चयो द्रष्टव्य' इतिवत् 'शोभनश्च द्रष्टव्यः' इत्यस्यापत्त:" (वैभूसा० पृ०३७४) ।
दूसरा दोष यह दिया गया कि 'घटस्य समुच्चयः' में जिस प्रकार 'समुच्चय' शब्द के सम्बन्ध से 'घट' शब्द के साथ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार 'च' शब्द के सम्बन्ध से भी 'घट' शब्द के साथ षष्ठी-विभक्ति का प्रयोग करके 'घटस्य च' प्रयोग को शुद्ध मानना चाहिये । एक परिभाषा है-"नामार्थयोविभिन्नविभक्तिकयोर्भेदेन अन्वयः", अर्थात् दो प्रातिपदिकार्थों का भेद-सम्बन्ध - 'विशेष्यविशेषण' आदि सम्बन्धों-से अन्वय तभी हो सकता है जबकि उनमें भिन्न-भिन्न विभक्तियों का प्रयोग किया गया हो। इसलिये 'विशेष्य विशेषण सम्बन्ध' होने के कारण 'घटस्य च' प्रयोग ही होना चाहिये, 'घटश्च' प्रयोग नहीं होना चाहिये ।
वस्तुतः 'निपातों' को अर्थ का वाचक मानने पर 'निपातों' के अर्थों को प्रातिपदिकार्थ मानना होगा और दो प्रातिपदिकार्थों का, बिना षष्ठी आदि विभक्तियों के, भेदसम्बन्ध से अन्वय हो नहीं सकता इसलिये 'घटश्च' के स्थान पर 'घटस्य च' प्रयोग ही साधु हो सकता है और यदि दो प्रातिपदिकार्थों का बिना षष्ठी आदि विभक्तियों के भी, भेद सम्बन्ध से, अन्वय सुसंगत मान लिया गया तो 'राजा पुरुषः' प्रयोग से भी 'राजा का पुरुष' इस अर्थ की प्रतीति होने लगेगी। द्र० -- "अपि च निपातानां वाचकत्वे प्रातिपदिकार्थयोविना षष्ठ्यादिकं भेदेन अन्वयासम्भवः । अन्यथा 'राजा पुरुषः' इत्यस्य 'राजसम्बन्धी पुरुषः' इत्यर्थस्यापत्तेः' (वैभूसा० पृ० ३७५-७६) ।
कौण्डभट्ट-रचित वैभूसा० के इस प्रसंग में “घटस्य समुच्चयः' इतिवत् 'घटस्य च" के स्थान पर " धव-खदिरयोः समुच्चयः' इतिवत् धवस्य च खदिरस्य च" यह उदाहरण प्राप्त होता है।
तीसरा दोष यह है कि 'घटं पटं च पश्य' इत्यादि प्रयोगों में 'घट' शब्द के साथ षष्ठी विभक्ति प्राप्त होगी क्योंकि यहाँ विवक्षित अर्थ यह है कि 'घट और पट
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