Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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निपातार्थ-निर्णय
१८७
शब्दानुशासनम्" (महा०, भा० १, पृ०४) इत्यत्र “अथ'शब्दस्य प्रारम्भ-क्रियाऽऽक्षेपकत्वम्'' कैय्यटायु क्तं संगच्छते । क्वचित्त सम्बन्ध-परिच्छेदकत्वं द्योतकत्वम् । यथा-कर्मप्रवचनीयानाम् । विशिष्टस्य तु न
धातुत्वम्, अपाठात्, अडाद्यव्यवस्थापत्तश्च । द्योतकता का अभिप्राय है अपने ('निपात' के) समीपस्थ (साथ में उच्चरित या लिखित) पद की (वाच्यार्थबोधिका) वृत्ति (शक्ति) का ज्ञान कराना। कहीं कहीं तो किसी विशेष क्रिया का अनुमान कराना ही द्योतकत्व है। जैसे – 'प्रदेशं विलिखति' इत्यादि वाक्यों में 'वि' ('उपसर्ग') 'नापने की क्रिया का अनुमान कराता है क्योंकि (इस वाक्य से) ''अँगूठे से तर्जनी तक के नाप को रेखा खींचता है" इस अर्थ की प्रतीति होती है। इसीलिये (क्रिया विशेष के अनुमानरूप द्योतकता के कारण ही) "अर्थ शब्दानुशानम्' (अब व्याकरण का प्रारम्भ होता है) यहां 'अथ' शब्द 'प्रारम्भ' क्रिया का अनुमान कराने वाला है" यह कैयट आदि का कथन सुसंगत हो जाता है । कहीं सम्बन्ध का निश्चय करना द्योतकत्व है। जैसे–'कर्मप्रवचनीय' संज्ञा वाले शब्दों का। विशिष्ट (निपात के साथ पूरे समुदाय) की धातु संज्ञा नहीं मानी जा सकती क्योंकि उनका (धातुपाठ में) पाठ नहीं किया गया है तथा ('निपात'-विशिष्ट समुदाय की 'धातु' संज्ञा मानने से) 'अट्' आदि (आगमों) के विषय में अव्यवस्था उपस्थित होगी।
द्योतकत्वं च ..."बोधकत्वम् -भिन्न भिन्न स्थलों में 'निपात' सहित पदों से प्रकट होने वाले भिन्न भिन्न अर्थों की दृष्टि से 'द्योतकत्व' के तीन अभिप्राय यहां बताये गये । 'द्योतकता' का प्रथम अभिप्राय है निपात के साथ अव्यवहित रूप से उच्चरित या लिखित धातु में विद्यमान, वाच्य अर्थ को कहने वाली, 'शक्ति' का ज्ञान कराना । जैसे—'साक्षात् क्रियते गुरुः' इस प्रयोग में 'साक्षात्' इस 'निपात' के साथ उच्चरित 'कृ' धातु में विद्यमान, 'दर्शन करना' रुप अर्थ का बोध कराना । यहाँ 'स्व' का अभिप्राय है द्योतकरूप से अभिमत 'साक्षात्' आदि 'निपात' पद या 'अनु' प्रादि 'उपसर्ग' पद । उसके साथ 'समभिव्याहृत' अर्थात् समुच्चरित पद हैं 'कृ', 'भू' आदि धातुएँ । उनमें रहने वाली 'वृत्ति' अर्थात् -- 'दर्शन करना' तथा 'अनुभव करना' आदि अर्थों को, वाच्यार्थ के रूप में, कहने वाली शक्ति । इस 'वृत्ति' अथवा शक्ति का बोध कराना ही निपातों की द्योतकता का अभिप्राय है।
क्वचित्त · संगच्छते--- 'द्योतकता' का दूसरा अभिप्राय है कहीं कहीं किसी विशिष्ट क्रिया का अनुमान कराना । जैसे-'प्रादेशं लिखति' इस वाक्य में 'प्रादेशंम्' में प्रयुक्त
१. तुलना करो-महा० प्रदीप टीका, भा० १, पृ० ४; शब्दानुशासनस्य प्रारभ्यमाणता-'अथ'-शब्द
सन्निधानेन प्रतीयते । २. प्रकाशित संस्करणों में 'तु' अनुपलब्ध ।
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