Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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निपातार्थ - निर्णयः
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[ 'निपातों' को अर्थ - द्योतकता का प्रतिपादन ]
'अनुभूयते सुखम', 'साक्षात्क्रियते गुरुः' इत्यादी निपातानां द्योतकत्वेन ग्रनुभव - साक्षात्कार-रूप-फलयोः धात्वर्थत्वेन सकर्मकत्वम् | "कर्म -संज्ञकार्थान्वय्यर्थकत्वम् सकर्मकत्वम्" इति निष्कृष्टमतेऽपि फलाश्रयतया कर्मसंज्ञकस्य धात्वर्थ-फल एवान्वयौचित्येन द्योतकत्वम् ग्रावश्यकम् ।
'अनुभूयते सुखम् ' ( सुख का अनुभव किया जाता है ) 'साक्षात्क्रियते गुरु : ' ( गुरु का दर्शन किया जाता है) इत्यादि वाक्यों में ('अनु' तथा 'साक्षात् ') 'निपातों' के ( अर्थ का) द्योतक होने से 'अनुभव' तथा 'साक्षात्कार' रूप 'फलों' के ( निपातार्थ न होकर ) धात्वर्थ होने के कारण ('भू' तथा 'कृ' धातुत्रों की ) 'सकर्मकता' है । 'कर्म' संज्ञक अर्थ में अन्वित होने वाले अर्थ का वाचक होना ' सकर्मकता' है " - इस सिद्धान्तभूत मत में भी, 'फल' का आश्रय होने के कारण, 'कर्म' संज्ञक शब्द का धातु के अर्थ 'फल' में ही अन्वय करना उचित है । इस लिये ( निपातों की) द्योतकता आवश्यक है ।
स्वरूप की दृष्टि से शब्दों के 'नाम', 'आख्यात', 'उपसर्ग' तथा 'निपात' इन चार विभागों की कल्पना बहुत प्राचीन काल में अस्तित्व धारण कर चुकी थी जिसका स्पष्ट निर्देश यास्क तथा पतंजलि ने क्रमशः निरुक्त तथा महाभाष्य में किया है । इस चतुर्विध विभाग में 'उपसर्ग', तथा 'निपात' को अलग अलग स्वीकार किया गया है । यों तो 'उपसर्ग' 'निपातों' के अन्तर्गत ही माने जाते हैं, परन्तु क्रिया अथवा तिङन्त पदों से सम्बद्ध होने से कुछ - 'प्र' आदि बीस - 'निपातों' को 'उपसर्ग' मान लिया जाता है तथा क्रियापदों से असम्बद्ध होने पर इन 'प्र' आदि को, 'उपसर्ग' न मान कर, 'निपात' ही माना जाता है । कम से कम पाणिनीय व्याकरण में इनकी यही स्थिति है । इस विषय में द्रष्टव्य - " चादयोऽसत्त्वे " ( पा० १.४.५७), "प्रादयः " ( पा० १.४.५८) तथा " उपसर्गा: क्रियायोगे" ( पा० १.४.५६ ) इत्यादि अष्टाध्यायी के सूत्र ।
नैयायिक विद्वान् निपातों' को अर्थ का वाचक मानते हैं तथा 'उपसर्गों' को अर्थ का द्योतक । नवीन वैयाकरण इन दोनों को ही अर्थ का द्योतक मानते हैं । यास्कीय निरुक्त तथा पातंजल महाभाष्य में इस बात की चर्चा तो हुई है कि 'उपसर्गों' को अर्थ का द्योतक माना जाय अथवा वाचक, परन्तु 'निपातों' के विषय में स्पष्टतः कुछ भी नहीं कहा गया । यास्क के द्वारा निरुक्त (१.४.११ ) में किये गये 'निपात' - विषयक
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