Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
अर्थ-निर्देश से यह अनुमान किया जा सकता है कि उनके अनुसार अनेक प्रयोगों में, 'उपसर्गों' के समान ही, 'निपात' भी अर्थ के वाचक हैं ।
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अनुभूयते ..... सकर्मकत्वम् - यहां नागेश ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। कि 'निपात' तथा 'उपसर्ग' दोनों ही अर्थ के द्योतक हैं । इसका कारण यह है कि 'अतुभूयते सुखम् ' तथा 'साक्षात् क्रियते गुरुः' जैसे वाक्यों में 'अनुभव' तथा 'साक्षात्कार' रूप 'फल' को यदि क्रमशः 'भू' तथा 'कृ' धातुओंों का ही अर्थ माना जाता है - 'अनु' उपसर्ग तथा 'साक्षात् ' निपात का अर्थ नहीं माना जाता - तभी यहां प्रयुक्त 'कृ' तथा 'भू' धातुएँ 'सकर्मक' बन सकती हैं ।
stusभट्ट ने वैभूसा में 'सकर्मक' तथा 'अकर्मक' की निम्न परिभाषायें, जिनका निर्देश ' धात्वर्थ-निरूपण' के प्रकरण में ऊपर किया जा चुका है, दी हैं- “धात्वर्थभूत 'फल' के अधिकरण से भिन्न अधिकरण वाले 'व्यापार' के वाचक धातु को 'सकर्मक' तथा " धात्वर्थभूत 'फल' के अधिकरण से अभिन्न अधिकरण वाले 'व्यापार' के वाचक धातु को 'अकर्मक" मानना चाहिये । ( द्र० – “ सकर्मकत्वं च फल- व्यधिकरण-व्यापारवाचकत्वम् । फल-समानाधिकरण - व्यापार-वाचकत्वम् ग्रकर्मकत्वम् " ) । इस परिभाषा के अनुसार 'भू' तथा 'कृ' धातुत्रों को सकर्मक बनाने के लिये यह आवश्यक है कि यहाँ के 'अनुभव' तथा 'साक्षात्कार' रूप 'फल' को 'निपात' का अर्थ न मानकर, 'धातु' का ही अर्थ माना जाय ।
[' द्योतकता' का अभिप्राय ]
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कर्म-संज्ञक
'आवश्यकम् - परन्तु 'अध्यासिता भूमयः' जैसे अनेक प्रयोगों को से कौण्डभट्ट की उपर्युक्त परिभाषा को अव्याप्ति दोष से दूषित मानते हुए नागेश भटट् ने ‘वस्तुतस्तु' कह कर 'सकर्मक' विषयक अपनी एक दूसरी परिभाषा प्रस्तुत की । वह है — "शब्द-शास्त्रीय कर्म -संज्ञकार्थान्वय्यर्थकत्वं सकर्मकत्वम् " -- प्रर्थान् व्याकरण शास्त्रीय 'कर्म' संज्ञक अर्थ से अन्वित होने वाले अर्थ की बोधक धातुएँ 'सकर्मक' हैं । यहाँ, 'निष्कृष्ट - मतेऽपि ' कथन के द्वारा इसी सिद्धान्तभूत मत की ओर संकेत करते हुए, यह कहा गया कि इस परिभाषा की दृष्टि से भी 'निपातों को अर्थ का द्योतक मानना ही उचित है क्योंकि इस परिभाषा में भी यह तो माना ही जाता है कि, 'फल' का प्राश्रय होने के कारण, 'कर्म' संज्ञक शब्द का धातु के अर्थभूत 'फल' में ही अन्वय होना चाहिये ।
१.
२.
निस० में अनुपलब्ध ।
निस० - वर्तमान का प्रशु० – मान ।
'द्योतकत्वम्' च स्व- समभिव्याहृत-पद- निष्ठ-वृत्त्युद्बोधकत्वम् । क्वचित्तु क्रिया-विशेषाक्षेपकत्वं ' द्योतकत्वम्' । यथा - 'प्रादेशं विलिखति' इत्यादौ 'विः " विमान - क्रियाऽऽक्षेपकः 'प्रादेशं विमाय लिखति' इत्यर्थावगमात् । अतएव " अथ
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