Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धांत-परम-लघु-मंजूषा
इसका अभिप्राय यह है कि 'गौ' शब्द के उच्चारण की अभिलाषा से किसी अशिक्षित ने अपनी असमर्थता के कारण 'गावी' इस अशुद्ध या असाधु शब्द का प्रयोग कर दिया। परन्तु सुनने वाले ने यह जान लिया कि 'गौ' शब्द का उच्चारण करना चाहते हुए भी यह व्यक्ति 'गौ' शब्द के स्थान पर 'गावी' का उच्चारण कर रहा है। इस प्रशिक्षित प्रयोक्ता, या बोलने वाले, से इस तरह के प्रसाधु प्रयोगों को सुन कर दूसरे लोग भी 'गौ' कहने के लिये 'गावी' जैसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं। इस प्रकार 'गावी' आदि असाधु शब्दों से 'गौ' आदि साधु शब्दों का ज्ञान होता है, क्योंकि गावी आदि शब्द 'गो' आदि के सदृश हैं।
मीमांसा-सूत्र १.३.२६ की व्याख्या में भी शबर ने इसी प्रकार की बात कही हैगाव्यादिदर्शनाद् गोशब्दस्मरणं ततः सस्मिादिमान अवगम्यते, अर्थात् 'गावी' आदि (असाधु) शब्दों को सुनने के पश्चात् 'गौ' शब्द का स्मरण होता है उसके बाद 'गौ' पदार्थ का ज्ञान होता है।
वस्तुतः नैयायिक तथा मीमांसक दोनों ही यह मानते हैं कि वाचकता शक्ति केवल साधु शब्दों में ही रह सकती है असाधु शब्दों में नहीं । अथवा इसी बात को दूसरे शब्दों में उन्होंने यों कहा है कि जो शब्द वाचकता शक्ति से युक्त हैं वे साधु शब्द हैं, उनसे अन्य असाधु हैं । नैयायिकों तथा मीमांसकों की इस स्थिति को एक मत के रूप में भर्तृहरि ने अपने वाक्यपदीय के ब्रह्मकाण्ड की निम्न कारिकाओं में प्रस्तुत किया है
ते साधुष्वनुमानेन प्रत्ययोत्पत्तिहेतवः ।
तादात्म्यम् उपगम्येव शब्दार्थस्य प्रकाशकाः॥ वाप० १.१५० वे (असाधु शब्द) साधु विषयक अनुमान (स्मृति) के द्वारा (गौ आदि पदार्थों के) ज्ञान के कारण बनते हैं। वे (असाधु शब्द) मानो (साधु शब्दों के साथ) तादात्म्य (अभेद) को प्राप्त करके शब्दार्थ के वाचक होते हैं (स्वतः नहीं)।
न शिष्टर् अनुगम्यन्ते पर्याया इव साधवः ।
न यतः स्मृतिमात्रेण तस्मात् साक्षाद् अवाचकाः ॥ वाप० १.१५१ ___ साधु ('गो', 'धेनु' इत्यादि) पर्याय शब्दों के समान (असाधु शब्दों को) विद्वान् पर्याय नहीं मानते तथा उन (असाधु शब्दों) का कोष आदि में भी वे संग्रह नहीं करते। अतः (वे असाधु शब्द अर्थ के) साक्षाद् वाचक नहीं हैं।
अम्बाम्बेति यथा बाल: शिक्षमाणः प्रभाषते । अव्यक्तं तविदां तेन व्यक्ते भवति निश्चयः । वाप० १.१५२ एवं साधौ प्रयोक्तव्ये योऽपभ्रंशः प्रयुज्यते ।
तेन साधु-व्यवहितः कश्चिद् अर्थोऽभिधीयते ॥ वाप० १.१५३ जिस प्रकार 'अम्बा' 'अम्बा' यह (कहने के लिये) सिखाया जाता हुआ बालक (शिशु) अव्यक्त रूप से कुछ बोलता है और उस (अव्यक्त भाषण) से व्यक्त (अम्बा शब्दों) के विषय में श्रोता का निश्चय हो जाता है उसी प्रकार साधु शब्द के प्रयोग के स्थान
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