Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण- सिद्धान्त-परम-लघु-मंजुषा
( मन जानता है) यह प्रयोग उपपन्न होता है । यहाँ आत्मा अन्तःकरण है तथा मन भी अन्तःकरण का वृत्ति विशेष है । 'आत्मा आत्मानं जानाति ' (आत्मा आत्मा को जानता है) इत्यादि ( प्रयोगों) में " अन्तःकरणावच्छिन्न (आत्मा) 'कर्ता' है तथा शरीरावछिन्न (आत्मा) 'कर्म' है", यह "कर्मवत् कर्मरणा तुल्यक्रियः” इस सूत्र के भाष्य में स्पष्ट किया गया है ।
'STT' धातु के 'फल' तथा 'व्यापार' के विषय में नागेश का मत यह है कि, घट, पट आदि विषय हैं जिसका ऐसा, ज्ञान ही 'ज्ञा' धातु का 'फल' है तथा उस ज्ञान के अनुकूल जो आत्मा तथा मन का संयोग वही 'व्यापार' है । इसीलिये 'मनो जानाति' इस प्रयोग में 'मन के जानने' की बात सुसंगत हो पाती है। आत्मा का अर्थ यहाँ 'अन्तः करण' तथा मन का अर्थ है अन्तःकरण की कोई विशिष्ट वृत्ति । 'आत्मा' शब्द को इन्द्रियों का उपलक्षरण भी माना जा सकता है क्योंकि मन से युक्त इन्द्रियाँ ज्ञान का कारण मानी गयी हैं । द्र० - " मनसा संयुक्तानि इन्द्रियाणि उपलब्धौ कारणानि भवन्ति " ( महा० ३.२.११५ ) ।
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'आत्मा आत्मानं जानाति' इस प्रकार के प्रयोग इसलिये किये जाते हैं कि वहाँ दो प्रकार के श्रात्माओं की कल्पना की जाती है - अन्तरात्मा और शरीरात्मा । इनमें पहले को 'कर्ता' तथा दूसरे को 'कर्म' मीन लिया गया । "कर्मवत्कर्मरणा तुल्यक्रियः " सूत्र के भाष्य में श्रात्मा की द्विविधता की बात स्पष्टतः निम्न शब्दों में स्वीकार की गयी है :- " द्वौ श्रात्मानो अन्तरात्मा शरीरात्मा च । अन्तरात्मा तत्कर्म करोति येन शरीरात्मा सुखदुखे अनुभवति । शरीरात्मा तत्कर्म करोति येन अन्तरात्मा सुखदुखे अनुभवति ।
[ 'श्रावरण- भङ्ग' अथवा 'विषयता' को 'ज्ञा' धातु का 'फल' नहीं माना जा सकता ] यत्तु - प्रावरणभङ्गो विषयता वा फलम् व्यापारस्तु ज्ञानम् एव – तन्न, कर्मस्थक्रियकत्वापत्तेः । तद्-व्यवस्था चेत्थम् उक्तं हरिणा
१.
२.
विशेषदर्शनं यत्र किया तत्र व्यवस्थिता । क्रिया - व्यवस्था त्वन्येषां शब्दैरेव प्रकल्पिता' ॥ वाप० ३.७.६६
अस्यार्थः:-यत्र कर्मणि कर्तरि वा कियाकृतो विशेषः कश्चिद् दृश्यते तत्र क्रिया व्यवस्थिता इत्युच्यते । नन्वेवं पच्यादिकर्तर्यपि श्रमादिरूपविशेषस्य दर्शनाद् इदम् ग्रयुक्तम् । किंच 'चिन्तयति', 'पश्यति' इत्यादीनां कर्तृस्थभावकत्वानुपपत्तिः । कर्तरि कियाकृत
वाप० - प्रकाश्यते ।
ह· -- कर्तृस्थभावकत्वानापत्तिः ।
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