Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा 'कृतिः' इत्यादौ यत्नमात्रे वृत्तिः-- यदि प्रथम मत के अनुसार 'कृ' धातु का अर्थ, 'यत्न' न मान कर, 'उत्पत्ति' रूप ‘फल के अनुकूल होने वाला 'व्यापार' अर्थ माना गया तो यह प्रश्न उपस्थित होता है कि 'कृतिः' इत्यादि प्रयोगों में, जो 'कृ' धातु से निष्पन्न हैं, केवल 'यत्न' अर्थ कैसे कथित होता है ? इसका उत्तर यहाँ यह दिया गया कि धातुएँ अनेक अर्थों वाली हैं इसलिये 'कृति' इत्यादि प्रयोगों में 'कृ' धातु को 'यत्ल' अर्थ का वाचक मान लेना चाहिये।
यत् वा 'यत्न'-'कृति'-शब्दयोरपि 'इत्यलम्-उपर्युक्त प्रश्न का दूसरा उत्तर यहाँ यह दिया गया कि 'कृतिः' तथा 'यत्न' इन दोनों शब्दों को सामान्य 'व्यापार' का वाचक मानना चाहिये तथा इस 'यत्न' शब्द को केवल मन के 'व्यापार' रूप यत्न का वाचक नहीं मानना चाहिये । ऐसा मानने पर 'कृति' का अर्थ 'यत्न' करने पर भी कोई दोष नहीं आता क्योंकि सामान्य 'व्यापार' का कथन तो किसी भी धातु से हो सकता है ।
"यत्न' शब्द सामान्य व्यापार' का वाचक है" अपने इस कथन की पुष्टि में नागेश ने "कारके" (पा० १.४.२३) सूत्र के भाष्य के एक ऐसे स्थल की ओर सङ्केत किया है जहां यह कहा गया है कि जब वक्ता की यह इच्छा होती है कि पतीली में होने वाले 'यत्न' (सामान्य पाचन 'व्यापार') को कहा जाय तो वह 'स्थाली पचति' का प्रयोग करता है। यदि यहां भी पतंजलि के वाक्य -- "स्थालीस्थे यत्ने कथ्यमाने" में विद्यमान 'यत्न' का मनो-व्यापार' अर्थ किया जाय तो वाक्य सर्वथा असंगत हो जायगा क्योंकि मन का 'व्यापार' रूप 'यत्न' पतीली में कैसे हो सकता है ? अतः 'यत्न' का अर्थ सामान्य 'व्यापार' मानना चाहिये और वही 'कृति' का भी वाच्यार्थ है ।
"कारके" इति सूत्रे भाष्ये-यद्यपि “कारके' (१.४.२३) सूत्र के भाष्य में एक साथ ऐसा कथन नहीं मिलता जैसा नागेश ने यहाँ उद्ध त किया है। परन्तु वहीं के दो स्थानों के वाक्यों को एक साथ मिला कर देखने से इस प्रकार का प्राशय प्रकट हो जाता है । इस दृष्टि से द्रष्टव्य-"द्रोणं पचति आढकं पचति इति सम्भवन-क्रियां धारणक्रियां च कुर्वती स्थाली पचतीत्युच्यते'' (पृ. ३४८) तथा "एवं तर्हि स्थालीस्थे यत्ने कथ्यमाने स्थाली स्वतंत्रा" (पृ० ३५२) ।
['लंकारार्थ' के विषय में नैयायिकों का सिद्धान्त]
यत्त ताकिका:-फलव्यापारौ धात्वर्थः। लकाराणां कृतौ एव शक्तिः, लाघवात्, न तु कर्तरि, कृतिमतः कर्तृत्वेन तत्र शक्तौ गौरवात्, प्रथमान्तपदेनैव तल्लाभाच्च। अाख्यातार्थे धात्वर्थो विशेषणम्, प्रकृत्यर्थप्रत्ययार्थयोः सहार्थत्वे प्रत्ययार्थस्यैव प्राधान्यात् । प्रथमान्तार्थे प्राख्याताओं विशेषणम् ।
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