Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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शक्ति - निरूपण
संयोग तथा विप्रयोग - 'संयोग' का अभिप्राय है प्रसिद्ध सम्बन्ध तथा 'विप्रयोग' का अर्थ है उस प्रसिद्ध सम्बन्ध का विनाश अथवा प्रभाव | 'संयोग' तथा 'विप्रयोग' के क्रमश: उदाहरण हैं- 'वत्स के सहित धेनु' तथा 'वत्स से रहित धेनु' । 'धेनु' शब्द के 'नव प्रसूता गाय', 'भैंस', 'अश्व', तथा 'स्त्री' आदि अनेक अर्थ होते हैं । परन्तु यहां 'सवत्सा' तथा 'अवत्सा' इन विशेषरणों से सूचित 'वत्स के संयोग' तथा 'विप्रयोग' द्वारा यह निर्णय हो जाता है कि इन प्रयोगों में 'धेनु' का अर्थ 'गाय' ही है, क्योंकि 'वत्स' गाय के संद्यः प्रसूत बच्चे को ही कहते हैं, इसलिये वत्स का संयोग तथा विप्रयोग केवल गाय के साथ ही हो सकता है, किसी अन्य के साथ नहीं ।
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साहचर्य - 'साहचर्य' का अर्थ है सादृश्य, क्योंकि दो सदृश प्राणियों या वस्तुनों का ही एक साथ प्रयोग संभव है। इसी तथ्य को बताते हुए पतञ्जलि ने "विपराभ्यां जेः " ( पा० १.३.१९) सूत्र के भाष्य में यह कहा कि तस्यास्य कोन्यो द्वितीयः सहायो भवितुम् अर्हति श्रन्यद् श्रत उपसर्गात् । तद्यथा श्रस्य गोद्वितीयेनार्थः इति गौरेवोपादीयते, नाश्वो न गर्दभः अर्थात् इस उपसर्ग 'वि' का सहयोगी इस 'परा' उपसर्ग के अतिरिक्त और दूसरा कौन हो सकता है । वैयाकरणों की परिभाषा - सहचरितासहचरितयोः सहचरितस्यैव ग्रहणम् (परिभाषेन्दुशेखर, परि० स० ११२ ) भी इसी तथ्य को प्रकट करती है ।
'साहचर्य' का उदाहरण है 'रामलक्ष्मणौ' (राम तथा लक्ष्मण) । यहाँ यद्यपि 'राम' शब्द के 'सारस', 'परशुराम', 'बलराम', 'रामचन्द्र', 'अभिराम' इत्यादि अनेक अर्थ हैं, परन्तु 'लक्ष्मरण' शब्द के साहचर्य से 'राम' का अर्थ दशरथपुत्र 'रामचन्द्र ही हो सकता है।
विरोध - दो विरोधियों के एक साथ कथन से भी अर्थ का निर्णय होता है । इसका उदाहरण है— 'रामार्जुन गतिस्तयो:' (राम तथा अर्जुन की विरोधी स्थिति के समान उन दोनों की स्थिति है ) । यहां सहस्रार्जुन का विरोधी होने के कारण 'राम' का अभिप्राय 'परशुराम' ही हो सकता है । दशरथ - पुत्र रामचन्द्र इत्यादि नहीं । इसी प्रकार परशुराम का विरोधी होने के कारण 'अर्जुन' का अभिप्राय सहस्रार्जुन ही हो सकता है, युधिष्ठिर का भाई अर्जुन इत्यादि नहीं ।
अर्थ – 'अर्थ' स तात्पर्य है - किसी विशेष पद का अर्थ, प्रयोजन या किसी और तरह से सिद्ध न होने वाला फल । इसका उदाहरण है- 'अञ्जलिना' जुहोति ( अञ्जलि से हवन करता है) तथा 'अञ्जलिना सूर्यम् उपतिष्ठते' (प्रञ्जलि से सूर्य का उपस्थान या उपासना करता है) । पहले प्रयोग में 'हवन करना' रूप विशेष 'अर्थ' के कारण 'अञ्जलि' का अर्थ है 'गोल और गड्ढे वाली' अञ्जलि | परन्तु दूसरे प्रयोग में 'उपासना करना' रूप अर्थ के कारण 'अञ्जलि' का अभिप्राय है 'दोनों हाथ जुड़े हुए हैं जिसमें ऐसी अञ्जलि' | 'अर्थ' शब्द का एक और अभिप्राय है 'प्रयोजन', उसकी दृष्टि से 'अर्थ' का उदाहरण हो सकता है - " स्थाणु ं वन्दे भवच्छिदे" (मोक्षप्राप्ति के लिये स्थाणु, अर्थात् भगवान् शङ्कर, की वन्दना करता हूँ) । यहां मोक्षप्राप्ति रूप प्रयोजन के कारण 'स्थाणु' का अर्थ शङ्कर मानना होगा ।
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प्रकरण अथवा प्रसङ्गः --- यदि भोजन के 'प्रकरण' में 'सैन्धवम् आनय' ( सैन्धव लामो) कहा गया तो वहां 'सैन्धव' का अर्थ नमक होगा । परन्तु यदि प्रस्थान के प्रसंग में वही वाक्य कहा गया तो सैन्धव का अर्थ होगा सिन्धुदेशीय अश्व ।