Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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आकांक्षादि-विचार
१२५
'शाब्दबोध' में स्वतंत्र रूप से 'तात्पर्य' को भी अनिवार्य कारण नहीं माना जा सकता । तुलना करो - "तात्पर्य- गर्भाकांक्षा-ज्ञान-कारणत्वावश्यकतया आकांक्षा घटकतयैव तात्पर्यज्ञानं हेतु:, न तु स्वातन्त्र्येण, इत्याहु: " ( तर्क प्रकाश से न्यायकोश में उद्धत ) ।
यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि लघुमंजूषा ( पृ० ५२५ ) के इस प्रकरण में नागेश ने भी 'तात्पर्य ' को ' शाब्दबोध' में हेतु मानने का स्पष्ट रूप से खण्डन किया है । द्र०—" अस्मादर्थद्वय विषयको बोधो जायते, तात्पर्यं तु क्वेति न जानीमः' इति सर्वजनानुभवविरोधात् न तस्य ( तात्पर्यस्य ) हेतुत्वम् " । परन्तु यहाँ उन्हीं उक्तियों के साथ 'तात्पर्य' को ‘शाब्दबोध' में हेतु माना गया है । यदि दोनों के प्रणेता नागेश ही है तो इस प्रकार के स्पष्ट विरोध का कारण समझ में नहीं आता ।
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