Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आकांक्षावि-विचार
१२३ सर्वार्थवाचकाः” इति शाब्दिकनये "घट शब्दात् पटप्रत्ययो न' इत्याद्युक्तम् । नानार्थस्थले लोके 'तात्पर्यम्' तु, 'एतत् पदं वाक्यं वा एतदर्थ-प्रत्ययाय मया उच्चार्यते' इति, प्रयोक्तुर् इच्छारूपम् । 'तात्पर्य'-नियामकं च लोके प्रकरणादिकम् एव । अतो भोजन-प्रकरणे ‘सैन्धवम् अानय' इत्युक्ते 'सैन्धव'-पदेन लवण-प्रत्ययः, युद्धावसरेऽश्वप्रत्ययः । वेदवाक्ये च' ऐश्वर'तात्पर्याद् अर्थबोधः । ननु प्रकरणादोनां शक्ति-नियामकत्वे शक्त यैव निर्वाहे किन्तात्पर्येण इति चेन् न । “अस्मात् शब्दाद् अर्थद्वयविशेष्यको बोधो जायते, अर्थद्वये शक्तिसत्त्वात् । 'तात्पर्यम्'तु क्वेति न जानीमः' इत्याद्यनुभव-विरोधात् । अत एव च 'पय ग्रानय' इत्युक्तेऽप्रकरणज्ञस्य 'दुग्धं जलं वाऽऽनेयम् ?' इति प्रश्न: सङ गच्छते ।
इत्याकांक्षादि-विचारः 'इस वाक्य अथवा पद का इस अर्थ के ज्ञापन के लिये उच्चारण किया जाना चाहिये' इस प्रकार की ईश्वरेच्छा 'तात्पर्य' है । इसीलिये, ('शाब्दबोध' में) 'तात्पर्य' के ('सहकारी' कारण) होने से “सभी शब्द सभी अर्थो के वाचक हैं" इस, वैयाकरणों के, सिद्धान्त में “घट' शब्द से 'पट अर्थ' का ज्ञान नहीं होता" इत्यादि कहा गया । लोक में, अनेक अर्थ वाले शब्द में, 'तात्पर्य', 'यह पद या वाक्य इस अर्थ के ज्ञापन के लिये मेरे द्वारा उच्चारित किया जाता है' इस तरह का, वक्ता का इच्छारूप है ।
लोक में 'तात्पर्य' का नियमन करने वाले 'प्रकरण' आदि ही हैं। इसलिये भोजन के अवसर पर 'सैन्धवम् प्रानय' यह कहने पर 'सैन्धव' शब्द से नमक का ज्ञान तथा युद्ध के अवसर पर घोड़े का ज्ञान होता है । वेद के वाक्यों में 'ऐश्वर तात्पर्य' से अर्थ का बोध होता है ।
___ 'प्रकरण' आदि के 'शक्ति'-नियामक होने से 'शक्ति' से ही ('शाब्दबोध' का) निर्वाह हो जाने पर 'तात्पर्य' को सहकारी कारण मानने का क्या प्रयोजन है ? यह (प्रश्न) उचित नहीं है। क्योंकि ऐसा मानने से, "दो अर्थों में 'शक्ति' १. ह.-लोक--। २. ह. तथा बंमि. में 'च' नहीं है।
ह-ईश्वर४. निस०, काप्रशु० में यह अंश नहीं है ।
For Private and Personal Use Only