Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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धात्वर्थ निर्णय
१३१
तिङ वाच्यम् "विशेषरणम् - तिङ्' के अर्थ 'कर्ता', 'कर्म', 'संख्या' तथा 'काल' माने गये हैं । आधार तथा प्राधेय सम्बन्ध से कर्ता 'व्यापार' का विशेषरण बनता है क्योंकि 'व्यापार' 'कर्ता' में ही रहता है । इसी प्रकार 'कर्म' 'फल' का विशेषरण बनता है क्योंकि 'फल' 'कर्म' में रहता है । 'संख्या' कर्तृवाच्य में 'कर्ता' का तथा कर्मवाच्य में 'कर्म' का विशेषण बनती है। यहां नागेश ने यह कहा है कि 'आख्यात' से जो 'शाब्दबोध' होता है वह सामान्यतया 'व्यापार' - प्रधान होता है तथा उस 'व्यापार' के विशेषण होते हैं 'सङ्ख्या’- विशिष्ट 'कारक' अर्थात् 'कर्ता' या 'कर्म' । कर्तृवाच्य में 'कर्ता' 'व्यापार' का विशेषरण होगा तथा कर्मवाच्य में 'कर्म' । इन 'कर्ता' और 'कर्म' के अतिरिक्त काल भी 'व्यापार' (क्रिया) का विशेषण बनता है । भर्तृहरि ने 'काल' को क्रिया का विशेषण बताते हुए कहा है – “क्रियाभेदाय कालस्तु " ( वाप० ३.६.२ ) । यों पृथक् पृथक् ये सभी 'सङ्ख्या', 'कारक' तथा काल, ' तिङ्' - विभक्ति के अर्थ माने गये हैं ।
['फल' तथा 'व्यापार' दोनों में धातु की पृथक् पृथक् 'शक्ति' मानने वालों का खण्डन ]
परे तु — फलव्यापारयोर्धातोः पृथक् शक्तावुद्देश्य विधेयभावेन ग्रन्वयापत्तिस्तयोः स्यात् । पृथग् उपस्थितयोस्तथा अन्वयस्य औत्सर्गिकत्वात् । किञ्चैकपदे व्युत्पत्तिद्वय- कल्पनेऽतिगौरवम् । तथाहि फल- विशेषरणक-व्यापारबोधे कर्तृ-प्रत्यय-समभिव्याहृत धातुजन्योपस्थितिः कारणम् । व्यापार- विशेषरणक- फल- बोधे कर्म-प्रत्ययसमभिव्याहृत-धातुजन्योपस्थितिः कारणम् इति कार्यकारण-भाव-द्वयकल्पनम् । धातोरर्थद्वये शक्तिद्वयकल्पनं, धातोर्बोधजनकत्व - सम्बन्ध - द्वय - कल्पनं चातिगौरवम् । तस्मात् फलावच्छिन्ने व्यापारे व्यापारावच्छिन्ने फले च धातूनां शक्तिः । कर्तृकर्मार्थ क तत्तत्प्रत्यय-समभिव्याहारश्च तत्तद्बोधे नियामक: — इत्याहुः ।
दूसरे तो यह कहते हैं कि 'फल' तथा 'व्यापार' में धातु की पृथक् पृथक् शक्ति मानने पर (दोनों में ) उद्देश्य विधेयभाव मान कर ( दोनों का) अन्वय करना पड़ेगा क्योंकि पृथक् पृथक् पद से ज्ञात हुए दो अर्थो में वैसा ही अन्वय स्वाभाविक है । और एक पद में दो व्युत्पत्तियों (कार्यकारण भावों) की कल्पना में अत्यधिक गौरव है । वह ( दो प्रकार का कार्यकारणभाव) इस प्रकार कि (१) - 'फल' है विशेषण तथा 'व्यापार' है विशेष्य (प्रधान) जिसमें ऐसे ‘शाब्दबोध' (रूप कार्य) में 'कर्तृ ' - (वाचक) प्रत्यय-सम्बद्ध धातु से व्यक्त होने वाला अर्थ कारण है तथा (२) - 'व्यापार' है विशेषरण और 'फल है' विशेष्य
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