Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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व्यंजना-निरूपण
यहाँ 'अन्ध' शब्द अपने 'नेत्रहीनत्व' रूप वाच्य अर्थ को छोड़ कर 'अप्रकाशत्व' रूप व्यंग्य अर्थ को, 'जहत्स्वार्था लक्षणा' वृत्ति के द्वारा, प्रगट कर रहा है । स्पष्ट है कि यहाँ वाच्यार्थ 'नेत्रहीनत्व' तथा व्यंग्यार्थ 'अप्रकाशत्व' में कोई सम्बन्ध नहीं है।
'प्रसिद्धाप्रसिद्धार्थ-विषयक:-प्रसिद्धाप्रसिद्धार्थ-विषयकः' तथा 'वक्त्रादिवैशिष्ट्यज्ञान-प्रतिभाशु बुद्धः' इन विशेषणों द्वारा 'व्यंजना' का अभिधा वृत्ति से अन्तर प्रगट किया गया है। अभिप्राय यह है कि 'अभिधा' वृत्ति से जाना गया अर्थ प्रसिद्ध होता है तथा उसके ज्ञान के लिये वक्ता आदि की विशेषता का जानना अनिवार्य नहीं होता। परन्तु व्यंग्य अर्थ प्रसिद्ध भी हो सकता है तथा अप्रसिद्ध भी और साथ ही व्यंग्य अर्थ के ठीक ठीक ज्ञान के लिये, 'वक्ता कौन है', 'श्रोता कौन है' इत्यादि विशेष बातों का जानना परम आवश्यक है।
____ उदाहरण के लिये 'राजत्युमावल्लभः०' इस श्लोक में 'प्रकरण' के अनुसार 'उमावल्लभ' शब्द उमा नाम की रानी के पति, किसी राजा, को कहता है। यह इसका अभिधेय अर्थ है जो प्रसिद्ध है। परन्तु तात्पर्यवश 'उमावल्लभ' शब्द 'व्यंजना' द्वारा भगवान् शंकर को भी व्यक्त करता है, जो इसका व्यंग्य अर्थ है । यह व्यंग्य अर्थ भी प्रसिद्ध अर्थ ही है । अतः यह प्रसिद्धार्थ-विषयक 'व्यंजना' हुई । द्र०-'अत्र प्रकरणेन अभिधया 'उमावल्लभ' शब्दस्य उमा नाम्नी नहादेवी तद्वल्लभ-भानुदेव-नृपतिरूपेऽर्थे नियंत्रिते व्यंजनयैव गौरीवल्लभरूपोऽर्थो बोध्यते' (साहित्यदर्पण, पृ० ५६-५७) ।
वक्त्रादि-वैशिष्ट्य-ज्ञान-प्रतिभाद्य बुद्धः-यहाँ 'प्रार्थी व्यंजना' के उन विभिन्न आधारों की ओर नागेश ने संकेत किया है जिनका उल्लेख मम्मट आदि ने अपने ग्रन्थों में किया है । वे हेतु निम्न हैं
वक्तृ-बोद्धव्य-काकूनां वाक्य-वाच्यान्यसन्निधेः । प्रस्ताव-देश-कालादेर् वैशिष्ट्यात् प्रतिभाजुषाम् ॥ योऽर्थस्यान्यार्थ-धी-हेतुर् व्यापारो व्यक्तिरेव सा ॥
__(काव्यप्रकाश, ३.२२)
'वक्ता'-कहने वाला। बोद्धव्य'-सुनने वाला। 'काकु'-शोक, भय या अन्य किसी भाव के कारण विकृत ध्वनि का प्रयोग । द्र०–'निम्न-कण्ठ-ध्वनिर् धीरैः काकुरित्यभिधीयते" (साहित्यदर्पण, पृ० ६० में उद्ध त) तथा "काकुः स्त्रियां विकारो यः शोकभीत्यादिभिर् ध्वनेः' (अमरकोश, १.६.१२) । 'वाक्य' वक्ता का कथन । 'वाच्य'-अभिप्रेत अर्थ । 'अन्यसन्निधिः'--किसी अन्य, योग्य व्यक्ति आदि, की समीपता। 'प्रस्ताव'--प्रकरण । 'देश'-स्थान । 'काल'–समय, बसन्त । 'आदि' पद से विभिन्न शारीरिक चेष्टाओं या ऐसे किसी अन्य आधारों का ग्रहण किया जा सकता है।
इन विभिन्न हेतुओं की विशेषता के कारण 'प्रतिभा', अर्थात् नैसर्गिक प्रतिभा (प्रज्ञा नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा मता) तथा शास्त्रीय प्रतिभा से सम्पन्न व्यक्ति
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