Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
'निपातों की द्योतकता' तथा 'स्फोट की व्यंग्यता' इन दोनों सिद्धान्तों को मानने के कारण यह स्पष्ट है कि, न केवल अलंकार शास्त्र के प्राचार्य अपितु, वैयाकरण विद्वात् भी 'व्यंजना' वृत्ति को मानते हैं। यहां यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि सम्भवतः व्याकरण के कुछ प्राचीन आचार्यों को व्यंजना वृत्ति स्वीकार्य नहीं थी। उनको ही ध्यान में रख कर ही नागेश ने यहाँ "वैयाकरणानाम् अप्येतत् स्वीकार आवश्यकः” इस वाक्य का प्रयोग किया है।
['व्यंजना' वृत्ति के अधिष्ठान तथा सहायक]
एषा च शब्द-तदर्थ-पद-पदैकदेश-वर्ण-रचना-चेष्टादिषु सर्वत्र । तथैवानुभवात् । वक्त्रादि-वैशिष्ट्य-ज्ञानं च व्यंग्य-विशेष-बोधे सहकारी, इति न सर्वत्र तदपेक्षा, इत्यन्यत्र विस्तरः।
यह 'व्यंजना' शब्द (वाक्य), उसके अर्थ, पद, पद के एक अंश (प्रकृति, प्रत्यय आदि), वर्ण, रचना (वैदर्भी आदि रीतियाँ) चेष्टा आदि (विविध अभिनय अथवा मुख, प्रांख आदि की चेष्टा तथा रोमांच आदि) में सर्वत्र रहती है। क्योंकि वैसा ही अनुभव होता है। वक्ता आदि की विशेषता का ज्ञान व्यंग्य विशेष के ज्ञान में सहायक है। इसलिये सर्वत्र व्यंग्य के स्थलों में (अनिवार्य रूप से) उनका होना आवश्यक नहीं है। यह अन्यत्र (लघुमंजूषा में) विस्तार से वर्णित है।
एषा च "तथैवानुभवात्--यहां 'व्यंजना वृत्ति' के विभिन्न आश्रयों की चर्चा की गई है । 'शब्द' अर्थात् वाक्य, वाक्य का अर्थ, पद, पद के भाग, वर्ण, रचना अर्थात् सङ्घटना अथवा रीति, तथा चेष्टा आदि, अर्थात् आंगिक, वाचिक तथा सात्विक चेष्टाओं
और विभिन्न भंगिमाओं, के द्वारा व्यंग्य अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। ध्वन्यालोक के तृतीय उद्योत में बड़े विस्तार से 'व्यंजना' के इन आश्रयों अथवा विभिन्न व्यंजकों की सोदाहरण चर्चा की गयी है।
वक्त्रादि-वैशिष्ट्य-ज्ञानं व्यंग्यविशेषबोधे सहकारी-ऊपर 'वक्ता' आदि की चर्चा की जा चुकी है। इनका ज्ञान व्यंग्य-विशेष के बोध में सहकारी है-सहायक है। वाच्य, लक्ष्य तथा व्यंग्य अर्थ, इन 'वक्ता' आदि के वैशिष्ट्य से, किसी अन्य व्यंग्य अर्थ का द्योतन कराते हैं। इस प्रकार की व्यंजना को 'प्रार्थी व्यंजना' कहा जाता है।
सर्वत्र न तद् अपेक्षा-सर्वत्र व्यंग्य स्थलों में 'वक्ता', 'बोद्धव्य' इत्यादि के होने पर ही व्यंग्य अर्थ की प्रतीति हो यह आवश्यक नहीं है । 'अभिधामूला व्यंजना' में इन
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