Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
'सादृश्य' का 'अधिकरण होना' रूप सम्बन्ध के द्वारा 'वाहीक' अर्थ का बोध यहां लक्षणा वृत्ति से होता है। अतः यह 'गौणी' लक्षणा है । तुलना करो-'सादृश्यात्त मता गौणयः, (साहित्यदर्पण), २.१४ ।
'गौर्वाहीकः' इस प्रयोग में 'वाहीक' शब्द के दो अर्थ किये जाते हैं। प्रथम- 'वाहीक' अर्थात् एक प्रदेश विशेष अथवा पंजाब का एक भाग। इस भाग अथवा प्रदेश में रहने वाले व्यक्ति को भी 'वाहीक' कहा जाता है। दूसरा अर्थ है-'बहिर्भवो वाहीक:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार वेद शास्त्रानुकूल आचार-विचार से रहित व्यक्ति 'वाहीक' है। यहाँ 'ब' तथा 'व' को एक मानकर "बहिषष्टि-लोपो यञ्च" तथा "ईकक च" (मभा० ४.१.८५) इन दो वार्तिकों से 'बहिष' शब्द के 'टि' ('इष्') भाग का लोप तथा 'ईकक्' प्रत्यय करके 'वाहीक' शब्द की सिद्धि की जाती है ।
यहाँ किस प्रकार 'गो' शब्द 'वाहीक' अर्थ को कहता है, इस विषय में, अन्य मतों का निराकरण करते हुए तथा अपना सिद्धान्त-मत प्रस्तुत करते हुए, मम्मट ने काव्यप्रकाश में यह कहा है कि 'गो' तथा 'वाहीक' दोनों में साधारणरूप से रहने वाले जो, जड़ता तथा मूर्खता आदि, अवगुण हैं, उनका आश्रय होने के कारण (इस आश्रयता रूप सम्बन्ध से) 'गो' शब्द का 'लक्ष्य' अर्थ है वाहीक । द्र०-“साधारण-गुणाश्रयत्वेन परार्थ एव लक्ष्यते' (काव्यप्रकाश तथा उसकी वामनी टीका. पृ० ४८)
इस लक्षणा का नाम 'गौणी' इसलिये पड़ा कि इस वृत्ति से वे गुण (जैसे यहां मूर्खता आदि हैं) लक्षित होते हैं, जो दो समान या सदृश पदार्थों या प्राणियों आदि में रहते हैं। इसलिए 'गुणाद् आगता गौणी' इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसका गोणी' नाम सार्थक ही है। इस प्रकार 'गौरणी' लक्षणा सदा 'सादृश्य' सम्बन्ध पर ही आश्रित रहती है। इस बात को तन्त्रवार्तिककार ने निम्न कारिका में स्पष्ट किया है
'लक्ष्यमारणगुणर् योगाद वृत्तर् इष्टा तु गौणता'
(काव्यप्रकाश, २.१२. में उद्धृत)
शुद्धा लक्षणा-'सादृश्य' सम्बन्ध से इतर - 'कार्यकारण' आदि सम्बन्धों के प्राधार पर वाच्यार्थ से सम्बद्ध अर्थ को बताने वाली लक्षणा को 'शुद्धा' लक्षणा कहा जाता है, क्योंकि इस लक्षणा में 'गोणी' के समान 'उपचार' या 'आरोप' का मिश्रण नहीं होता। इसीलिये इसका नाम 'शुद्धा' पड़ा। द्र०-"पूर्वा तु उपचारामिश्रणात् शुद्धा"। साहित्यदर्पण (२.१४)
शुद्धा लक्षणा का उदाहरण है-'प्रायुघुतम्' (घृत आयुवर्द्धन का कारण है)। यहाँ 'कार्यकारण' सम्बन्ध के आधार पर 'घृत' शब्द अपने ‘शक्यार्थ' (घृत) से सम्बद्ध
आयू का लक्षणा द्वारा बोध कराता है। द्र०-"सादृश्येतर-सम्बन्धात् शुद्धास् ता: सकला भपि" (साहित्यदर्पण २.१४)
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