Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
लिङ्ग-'लिङ्ग' का अभिप्राय है कोई विशेष संकेत या चिन्ह । इसका उदाहरण है-अक्ता शर्कराः उपदधाति (चुपड़े हुए कंकड़ों के वेदी के पास रखता है)। इस वाक्य के साथ ही यह कहा गया कि तेजो वै घृतम् (घृत निश्चय ही तेज है)। यह 'अर्थवाद' या प्रशंसापरक वाक्य ही यहां यह संकेत देता है कि घृत से कंकड़ चुपड़े जाने चाहिये तेल या चर्बी आदि किसी अन्य पदार्थ से नहीं।
अन्य शब्द की सन्निधि अथवा सामीप्य–विद्वानों ने 'सन्निधि' का अर्थ समानाधिकरणता या समानार्थकता माना है। इसीलिये समानाधिकरणता न होने के कारण, 'सशंख-चक्रो हरिः' को 'शङ्ख-चक्र' पद के सामीप्य का उदाहरण न मानकर संयोग' का ही उदाहरण माना जाता है । 'सन्निधि' का उदाहरण है-'रामो जामदग्न्यः । (जमग्नि के पुत्र राम)। यहां 'राम' तथा 'जामदग्न्य' में समानाधिकरणता अथवा समानार्थकता है । इसलिये 'राम' पद से परशुराम का ही बोध होता है।
सामर्थ्य-'सामर्थ्य' का अभिप्राय है 'समर्थता' या 'कारणता' (कारण बनना)। 'शब्द-निष्ठ' तथा 'अर्थ-निष्ठ' होने के कारण 'सामर्थ्य' दो प्रकार का होता है। शब्दनिष्ठ सामर्थ्य का उदाहरण है-'अभिरूपाय कन्या देया' (सुन्दर या योग्य व्यक्ति को कन्या देनी चाहिये)। यहां 'अभिरूप' का अभिप्राय, 'अभिरूप' शब्द में विद्यमान 'सामथ्यं' के आधार पर, अभिरूपतर (अत्यन्त सुन्दर या योग्य) किया जाता है। अर्थ-निष्ठ 'सामथ्यं' का उदाहरण है -- 'मधुना मत्तः कोकिलः' (वसन्त के कारण मत्त कोयल)। यहां 'मधु' शब्द के अर्थ (वसन्त) में ही सामर्थ्य विद्यमान है क्योंकि वसन्त ही कोकिल को मत्त बना सकता है । अतः यहां 'मधु' का अर्थ वसन्त ही होगा। द्र०-प्रन्यस्य मधुशब्दार्थस्य कोकिल-मादनासामर्थ्यात (काव्यप्रकाश, प्रदीप टीका, आनन्दाश्रम संस्करण पृ० ६४)
प्रौचिती-'औचित्य' का अभिप्राय है योग्यता या उचित का भाव। इस हेतु के आधार पर "नीम के वृक्ष को जो मनुष्य परशु से, जो मधु तथा घृत से, जो सुगन्धित द्रव्यों तथा माला आदि से, सभी के लिये वह कटु ही होता है", इस कथन में 'परशु' का अन्वय 'छेदन' क्रिया में, 'मधु' तथा 'घृत' का अन्वय 'सिञ्चन' क्रिया में तथा 'गन्ध', 'माला' आदि का अन्वय 'पूजन' क्रिया में होता है।
'सामर्थ्य' तथा 'पौचित्य' में अन्तर-'सामर्थ्य' तथा 'मोचित्य' में अन्तर यह है कि 'सामर्थ्य' में समर्थता या कारणता पर अधिक बल है, जब कि 'औचित्य' में 'उचितता' पर । 'मधुना मत्तः कोकिलः' इस 'सामर्थ्य' के उदाहरण में 'मधु' के अर्थ 'बसन्त' में ही यह शक्ति या कारणता विद्यमान है कि वह कोकिल को मतवाली बना सके अन्य 'पासव' आदि अर्थों में वह शक्ति या सामर्थ्य नहीं है। 'सामर्थ्य' तथा 'पौचित्य' में अन्तर करने की दृष्टि से, 'औचित्य' का जो उदाहरण "पातु वो दयितामुखम्" (प्रेयसी की सम्मुखता तुम्हारी रक्षा करे) मम्मट आदि ने दिया है वह अधिक उपयुक्त है। क्योंकि वहाँ उचितता की स्पष्ट प्रतीति होती है। प्रेयसी के साम्मुख्य के द्वारा उसके प्रेमी की रक्षा किये जाने में अधिक 'औचित्य' है, यों रक्षा करने का सामर्थ्य तो रक्षा के अन्य साधनों से भी सम्भव है। यश्च निम्बं परशुना० इत्यादि जो यहां 'औचित्य' का उदाहरण दिया गया है उस में भी 'सामर्थ्य' तथा 'औचित्य' का अन्तर इसी रूप में देखना चाहिये। यहां 'परशुना' इत्यादि में 'उनकी 'छेदन' आदि की दृष्टि से कारणता,
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