Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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शक्ति-निरूपण
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'मणि' शब्द में पाणिनीय व्याकरण के अनुसार भ्वादिगण के 'मरण' (शब्दे ) धातु तथा 'इनि' प्रत्यय की कल्पना की जा सकती है । परन्तु इन अवयवों के अर्थ का 'मरण' पद के समुदायार्थ ( रत्न विशेष ) से कोई सम्बन्ध नहीं है । इसी प्रकार 'नूपुर' पद में दो श्रवयव माने जा सकते हैं - 'नू' तथा 'पुर' प्रथम 'नू' शब्द 'नू' (स्तुतौ ) धातु से 'क्विप्' प्रत्यय करके तथा दूसरा 'पुर' शब्द 'पुर्' (अग्रगमने ) धातु से 'अच' प्रत्यय करके निष्पन्न हो सकता है । परन्तु इन श्रवयवार्थों का 'नूपुर' शब्द के समुदायार्थ ( श्रलंकार विशेष ) में कोई ज्ञान नहीं होता ।
'योग' शक्ति - 'योग' शक्ति की स्थिति वहां मानी जाती है जहां वैयाकरणों ने जिन जिन 'प्रकृति', 'प्रत्ययों' अथवा अवयवों का विभाजन किया है केवल उन अवयवों के अर्थ समुदायार्थ में भी विद्यमान हों । वस्तुत: यहां 'शक्ति' को इन अवयवार्थों से ही सम्बद्ध माना गया है । जैसे- 'पाचक:' आदि शब्दों में 'योग' शक्ति है । 'पाचक' शब्द में 'पच्' धातु से 'ण्वृल्' प्रत्यय की कल्पना की जाती है तथा इन्हीं दोनों अवयवों का सम्मिलित अर्थ ही 'पाचक' शब्द के समुदायार्थ ( पकाने वाला) के रूप में प्रकट होता है । तुलना करो :“तद् यत्र स्वर-संस्कारौ समर्थों प्रादेशिकेन विकारेणन्वितौ स्याताम् सर्वं प्रादेशिकम् " ( निरुक्त १.१४)
शब्दों में किया जाता है । शब्द | 'पङ्कज' शब्द में,
'योगरूढ़ि' शक्ति -- 'योगरूढ़ि' शक्ति उन शब्दों में मानी जाती है जिनमें व्याकरणशास्त्र द्वारा कल्पित अवयवों के अर्थ तो हों, परन्तु उन अवयवार्थों से सम्बद्ध प्रधान भूत अर्थ कुछ और ही हों । इस विशेष्य अथवा प्रधानभूत अर्थ के आधार पर भी 'शक्ति' का निरूपण इन 'योगरूढ़ि शक्ति' के उदाहरण हैं— 'पङ्कज' आदि 'पङ्के जायते' इस विग्रह के अनुसार 'पङ्क' शब्द पूर्वक 'जन्' धातु से ड प्रत्यय करके, 'पङ्क' तथा 'ज' इन दो अवयवों की कल्पना की जाती है। इन दोनों अवयवों का अर्थ (पङ्क अर्थात् कीचड़ में पैदा होने वाला) 'पङ्कज' शब्द के समुदायार्थ ( कमल) में है, क्योंकि कमल कीचड़ में उत्पन्न होता है । परन्तु 'पङ्कज' शब्द की 'शक्ति' का निरूपण इस अवयवार्थ के आधार पर नहीं किया जाता। क्योंकि पङ्क में उत्पन्न होने वाली प्रत्येक वस्तु को 'पङ्कज' नहीं कहा जाता। इसलिये अवयवार्थ से विशिष्ट जो समुदायार्थ ( कमल) है वह विशेष्य अथवा प्रधानभूत अर्थ है तथा उसी के आधार पर 'पङ्कज' शब्द की शक्ति का निश्चय किया जाता है ।
अभिधा शक्ति के इन तीन प्रकारों- रूढ़ि, योग तथा योगरूढ़ि - को पण्डितराज जगन्नाथ ने क्रमशः 'समुदायशक्ति', 'केवलावयवशक्ति' तथा 'समुदायावयवशक्तिसंकर' नाम दिया है । द्रष्टव्य — सेयम् श्रभिघा त्रिविधा – समुदायशक्तिः केवलावयवशक्तिः, समुदायावशवशक्ति- संकरश्च (रसगंगाधर, आनन २, पृ० १२६ ) ।
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